(संतानहीन
योग )
पंचमेश पापपीड़ित
होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती।
राहु या केतु से जातक की कुंडली में कालसर्पयोग बनता हो तो जातक के संतान नहीं होती।
पंचमेश कमजोर हो तीन केंद्रों में पापग्रह हो तो जातक के संतान नहीं होती। लग्न में
मंगल अष्टम में शनि एवं पंचम में सूर्य हो तो जातक का वंश आगे नहीं चलता । चतुर्थ में
पापग्रह, सप्तम में शुक्र एवं दसम में चंद्रमा हो तो जातक का वंश आगे नहीं चलता। चतुर्थभाव
में पापग्रह हो तथा चंद्रमा से आठवें स्थान में भी पापग्रह हो तो जातक का वंश आगे नहीं
चलता। ऐसी अवस्था में समय रहते जातक को वेद पाठी विद्वान् ब्राह्मण से दोष निवृति करा
लेनी चाहिए।
संतान बाधा
और उपाय :
भारतीय दर्शन
आत्मा की अमरता के साथ पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म को मानता है तथा व्यवहारिक रूप से
यह विज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा पूर्ण रूप से स्पष्ट मुखरित होता है। जन्म कुंडली
के सूक्ष्म अध्ययन से स्पष्टत: पता चलता है कि पिछले अनेक जन्मों में जातक ने क्या-क्या
पाप किए। जिसके कारण इस जन्म में संतान नहीं है, या संतान होकर मर जाती है या घर में
कुपुत्र उत्पन्न हो रहे हैं। पुत्रोत्पत्ति एवं संतान सुख के लिए यह आवश्यक है कि जो-जो
ग्रह बाधाकारक हो, उस उस ग्रह के लिए, जो-जो जप, दान एवं शांति की क्रिया है, वो-वो
करे । दोष निवृत्ति से पुत्रोत्पत्ति एवं संतान सुख की संभावना बढ़ जाती है। सेतु स्नान
(मंत्र एवं संकल्पपूर्वक समुद्र स्नान), सत्कथाओं के श्रवण कीर्तन, रूद्राभिषेक (शिवपूजा)
तथा भगवान विष्णु के वृत, दान, श्राद्ध, नागप्रतिष्ठा (सर्प देवता की मूर्ति प्रतिष्ठा
पूजन) आदि करने से संतान की प्राप्ति होती है।
ऐसे दंपत्तियों को पुत्र लाभ हुआ, जो डॉक्टरों के चक्कर काट-काट कई ऑपरेशन करा-करा कर, दवाई खाकर निराश हो गए। विवाह के बीस-बीस वर्ष बीतने पर संतान जिनके नहीं थी। जन्म कुंडली जन्य दोष को निवृत्ति कराने के बाद, कालसर्पयोग की शांति के बाद उन सभी के मनोवांछित संकल्प पूरे हुए तथा ऐसे सभी लोग भारतीय ज्योतिष एवं मंत्र विद्या से पक्के भक्त एवं दीवाने हो गए। यह है ज्योतिष विद्या का सही व सच्चे चमत्कार का परिणाम।
भारतीय ज्योतिष
विज्ञान के अनुसार यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य है तो यह समझना चाहिए कि भगवान शंकर
और गरूड़ के द्रोह करने के कारण या पितरों के शाप के कारण जातक को संतान सुख नहीं है।
अत: सूर्य के वेदोक्त मंत्रों के सात हजार जप एवं तत्संबंधित वस्तुओं का दान तथा सूर्य
को अर्घ्य देते हुए रविवार का नियमित व्रत रखना चाहए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक
को सिद्धिप्रद देवी की स्थापना करनी चाहिए।
यदि संतान
प्रतिबंधक ग्रह चंद्रमा है तो माता, मौसी, सासु, गुरु पत्नी या किसी अन्य सधवा स्त्री
के चित्त को दुःख पहुंचाने के कारण जातक को संतान सुख नहीं है। अत: चंद्रमा के वेदोक्त
मंत्रों के ग्यारह हजार जप करने चाहिए। चंद्रमा संबंध वस्तुओं का दान करते हुए सोमवार
का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को शिव की उपासना करनी
चाहिए।
यदि संतान
प्रतिबंधक ग्रह मंगल हो तो ग्रामदेवता, भगवान कार्तिक स्वामी, शत्रु अथवा भाई कुटंबीजनों
के शाप के कारण जातक को संतान सुख नहीं होता। ऐसे में मंगल के वेदोक्त मंत्रों का दस
हजार जप करना चाहिए। मंगल संबंधी वस्तुओं का दान करते हुए मंगलवार का नियमित व्रत रखना
चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को महारूद्र या अतिरूद्र यज्ञ कराना चाहिए।
यदि संतान
अवरोधक ग्रह बुध है तो समझिए कि बिल्ली को मारने के कारण या मछलियों तथा अन्य प्राणियों
के अंडों को नष्ट करने के कारण, कम उम्र के बालक-बालिकाओं (झडोलिए) के शाप से, भगवान्
विष्णु के अनादर के कारण संतान नहीं हो रही है। ऐसे में जातक को बुध के वेदोक्त मंत्र
के चार हजार जप करने चाहिए बुध संबंधी वस्तुओं का दान करते हुए बुधवार का नियमित व्रत
रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक का महाविष्णु या अतिविष्णु यज्ञ कर कास्यपात्र
दूध में देना चाहिए।
जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति बिगड़ा हुआ है तो ऐसे व्यक्ति ने इस जन्म या पूर्व जन्म में फलदार वृक्षों को कटाया है। कुलगुरु कुल देवता या किसी आदरणीय व्यक्ति का अपमान किया है। जिसके कारण जातक को संतान सुख नहीं होता। ऐसे में जातक को गुरु के वैदिक मंत्रों का 19, 000 जग करने चाहिए गुरु संबंधित वस्तुओं का दान करते हुए वृद्ध लोगों का आदर करते हुए गुरु को सेवा को एवं गुरुवार का नियमित व्रत करें। हरिवंश पुराण के अनुसार पितरों की तिथि को श्राद्ध यज्ञ करना चाहिए।
यदि शुक्र
के कारण संतान नहीं हो रही है तो समझिए इस व्यक्ति ने फल-पुष्प युक्त वृक्षों को कटवाया
है। गौ के प्रति पाप किया। साध्वी स्त्री का शाप गर्भपात बलात्कार का दोष या यक्षिणी
का शाप है। ऐसे में शुक्र के वेदोक्त मंत्रों का सोलह हजार जप कराना चाहिए, शुक्र की
वस्तुओं के दान करते हुए, शुक्रवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार
गौ के पालन व दान में पुत्र अवश्य होगा।
जन्म कुंडली
में यदि शनि बिगड़ा हुआ तो ऐसा समझिए कि जातक ने पीपल के वृक्ष कटवाए, मरते वक्त किसी
की आत्मा को दु:खाया, निर्धन गरीब की हाय, पिशाच, प्रेत व मृतआत्मा के दोष से जातक
को संतान का सुख नहीं है। ऐसे में शनि के वेदोक्त मंत्रों का तैंतीस हजार जप करना चाहिए।
शनि संबंधी वस्तुओं का दान करना चाहिए एवं कीड़ि नगरा सींचते हुए शनिवार का नियमित
व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार महामृत्युजप का जप व हवन संकल्पपूर्वक करना
चाहिए।
यदि राहु
के कारण संतान बाधा हो रही है तो सर्प के शाप के कारण ही ऐसा हुआ है। ऐसे में जातक
को राहु के वेदोक्त मंत्रों के अठारह हजार जप करते हुए घर में नागपाश यंत्र का नित्य
पूजन करना चाहिए। सर्दी में जरूरतमंदों को का दान करना चाहिए एवं बुधवार का व्रत रखना
चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को पराई कन्या का दान संकल्पपूर्वक करना चाहिए
तब पुत्र लाभ होता है।
यदि केतु
के कारण संतान बाधा है तो ऐसे में ब्राह्मग का शाप, अपमान के कारण ऐसा हुआ है। ऐसे
में जातक को केतु के वेदोक्त मंत्रों के सत्रह हजार जप करने चाहिए। ब्राह्मणों को सम्मान
देकर प्रीतिपूर्वक ब्रह्मभोज करा उन्हें संतुष्ट करें, वस्त्र - उपवस्त्र, एवं दक्षिणा
देनी चाहिए। इससे केतु का दोष नष्ट हो जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को
कपिल वर्ण गाय का दान करना चाहिए।
यदि मांदि
पंचम में हो या पंचमेश के साथ हो तो ऐसे में किसी प्रेत के शाप से ऐसा हुआ है । केतु
या बृहस्पति भी मांदि के साथ हो तो पूर्व जन्म में किया ब्राह्मण की हत्या संतान में
बाधक है। किंतु मांदि यदि शुक्र या चंद्रमा के साथ हो तो व्यक्ति ने गाय या किसी युवति
की हत्या पूर्व जन्म में की है। अत: ऐसे में ग्रह शांति कराते हुए संकल्पपूर्वक ब्राह्मणों
को भोजन एवं दक्षिणा देकर तृप्त करें।
संतान योग
पर एक ऐतिहासिक घटना
कथा प्रसिद्ध
हैं कि प्राचीनकाल में एक बहह्मण ने ज्योतिष में विशेष पंडिल्य अर्जन किया। उसका विवाह
अपने गांव से कुछ दूर दूसरे गांव की कन्या से हो चुका था । ब्राह्मण ने एक ऐसे पुत्र
पैदा करने की कल्पना की जो कि बड़ा होकर महान् सम्राट बने। इस उद्देश्य से उस विद्वान्
ब्राह्मण ने ज्योतिष विज्ञान के आधार पर गर्भाधान का ऐसा मुहूर्त व लग्न निकाला कि
जिससे सम्राट ही पैदा हो पर यह बात उसने अपनी पत्नी को नहीं बतलाई।
सिंह के
सूर्य को ध्यान में रखते हुए दो दिन पूर्व भाद्रपद माह में ब्राह्मण अपनी पत्नी को
लेने के लिए ससुराल चल पड़ा। किन्तु तेज वर्षा के कारण बीच में पड़ने वाली गोदावरी
नदी में जलस्तर इतना बढ़ गया कि नदी पार करना कठिन था। ब्राह्मण ने बहुत अनुनय-विनय
की पर कोई भी नाविक उफनती हुई गोदावरी में नाव डालने का साहस न कर सका। समय निकलता
जा रहा था, नदी के उफान के साथ-साथ ब्राह्मण का मुख मलिन होता जा रहा था। ब्राह्मण
की उद्विग्नता और अति मलीन चेहरे को देख कर एक कुम्हार ने उसके दुःख का कारण पूछा।
ब्राह्मण ने अपनी सारी कहानी और आकांक्षा उस कुम्हार को सुनाई। ब्राह्मण के दु:ख और
तेजस्विता से प्रभावित होकर कुम्हार ने निवेदन किया किया कि नदी को पार करना तो सम्भव
नहीं, पर आपकी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है यदि आप मेरी पुत्री से गन्धर्व विवाह कर लें।
मेरी पुत्री को आज प्रथम रजोदर्शन का चतुर्थ दिवस । ब्राह्मण ने कुम्हार के प्रस्ताव
को स्वीकार कर उसकी पुत्री से गन्धर्व विवाह किया तथा निश्चित मुहूर्त व लग्न में गर्भाधान
संस्कार किया। परिणामतः कुम्हार की पत्नी गर्भवती हुई।
निर्धारित
समय के बाद कुम्हार की पुत्री से ब्राह्मण के यहाँ एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। जो
आगे चलकर राजा शालिवाहन बना। जिसके नाम से दक्षिणी व मध्य भारत में आज भी "शाक्य
सम्वत्" चलता है। अब तो यही हमारा राष्ट्रीय
सम्वत् है। ज्योतिष शास्त्र एवं संतान योग की व्यवहारिक उपयोगिता पर यह ज्वलंत उदाहरण
इसकी सच्चाई का सबसे बड़ा एतिहासिक प्रमाण है।
अगर आप ज्योतिष या वास्तु
सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और
जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा ।
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