आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या
को पितृ विसर्जन या आश्विन कृष्ण अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पितर लोक से आए हुए
पित्तीश्वर महालय भोजन में तृप्त हो अपने लोक को जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा
दानादि से पितर तृप्त होते हैं। जाते समय वे अपने पुत्र, पौत्रों पर आशीर्वाद रूपी
अमृत की वर्षा करते हैं। इस दिन स्त्रियां संध्या समय दीपक जलाने की बेला में पूड़ी,
मिष्ठान्न अपने दरवाजों पर रखती हैं। जिसका तात्पर्य यह होता है कि पितर जाते समय भूखे
न जाएं। इसी प्रकार दीपक जलाकर पितरों का मार्ग आलोकित किया जाता है। श्राद्ध पक्ष
अमावस्या को ही पूर्ण हो जाते हैं।
इस अमावस्या का श्राद्धकर्म और तान्त्रिक
दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। भूले-भटके पितरों के नाम का ब्राह्मण तो इस दिन जिमाया
ही जाता है, साथ ही यदि किसी कारणवश किसी तिथि विशेष को श्राद्धकर्म नहीं हो पाता,
तब उन पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस अमावस्या के दूसरे दिन से शारदीय
नवरात्र प्रारम्भ हो जाते हैं। यही कारण है कि मां दुर्गा के प्रचण्ड रूपों के आराधक
और तंत्र साधना करने वाले इस अमावस्या की रात्रि को विशिष्ट तान्त्रिक साधनाएं भी करते
हैं। पितृ विसर्जन अमावस्या सर्व पितृ अमावस्या का हिंदू कैलेंडर में बहुत महत्व है।
इसे पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहते हैं। इस बार यह अमावस्या 06 अक्टूबर 2021 को है।
इस दिन तर्पण, पिंडदान, दान आदि का विशेष महत्व होता है। सर्व पितृ शब्द सभी पूर्वजों
को दर्शाता है। इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि
ज्ञात नहीं है या याद नहीं है। शेष भाग के लिये -Shribalaji- पर क्लिक
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