Saturday, February 26, 2022

धन प्राप्ति के लिए वास्तु कारण और उपाय

 

आज ग्रामीण हो या शहरी, व्यापारी हो या नौकरी पेशा, देश की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत कर्ज में डूबा हुआ है। पहले की तुलना में आजकल कर्जदार लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। आर्थिक कष्ट और बढ़ते कर्ज के कारण आत्महत्या करने का सिलसिला बढ़ता है। रोजाना अखबारों में इस प्रकार की दुःखद खबरें पढ़ने को मिलती है। निश्चित ही इसमें भाग्य के साथ-साथ निवास स्थान या व्यवसाय स्थल का  वास्तुदोष पूर्ण होना भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। व्यक्ति कुछ सामान्य वास्तु नियमों का पालन करे तो निश्चित ही वह अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। पैसों के नुकसान को रोक सकता है और आर्थिक कष्ट एवं कर्ज से मुक्ति पा सकता है।

संभव कारण

v  कभी भी बड़े भवनों के बीच छोटा भूखण्ड न खरीदें। आस-पास के भवनों की तुलना में जो भवन बहुत छोटा होता है, उसमें रहने वाले कभी उचित तरक्की नहीं कर पाते इस कारण गरीबी व कर्ज में डूबे रहते हैं।

v  बाउण्ड्रीवॉल एवं भवन का उत्तर पूर्व (ईशान कोण) दबा कटा, गोल होना काफी अशुभ होता है इस दोष के कारण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसा कोई भी दोष हो तो उसे शीघ्र ही दूर करवाना चाहिये। इसके विपरीत ईशान कोण का बड़ा होना अत्यन्त शुभ होता है।

v   भवन एवं प्लॉट का ईशान कोण वाला भाग नैऋत्य कोण की तुलना में नीचा होना चाहिये। ईशान ऊँचा होने से गृहस्वामी को आर्थिक संकट आते रहते हैं।

v  भवन की उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में भूमिगत पानी की टंकी, कुआँ या बोर होना बहुत शुभ होता है, इससे आर्थिक संपन्नता आती है। उपरोक्त दिशाओं के अलावा का कारण बनता है। भवन के मध्य में तो किसी भी प्रकार का गड्ढा, कुओं, बोरिंग इत्यादि होनेसे गृह स्वामी भयंकर आर्थिक संकट में आ जाता है। अतः दोषपूर्ण गढो को जितना जल्दी हो सके भर देना चाहिए।

v  भवन के मुख्यद्वार के सामने किसी भी प्रकार का वेध जैसे खम्बा, पेड़, खुली नाली इत्यादि होना अशुभ होता है। इस प्रकार का दोष अन्य कष्टों के अलावा आर्थिक कष्ट का कारण बनता है।

v  फंगशुई के अनुसार शयनकक्ष या तिजोरी वाले कमरे के प्रवेशद्वार के सामने वाली दीवार के बायें कोने में सम्पत्ति एवं भाग्य का क्षेत्र होता है। यह कोना कभी भी कटा हुआ नहीं होना चाहिए। यहाँ पर धातु की कोई चीज रखना या लटकाना शुभ होता है।

v  ईशान कोण में टॉयलेट होने से पैसा फलश होता रहता है एवं भवन के मध्य में टॉयलेट होने से आर्थिक संकट आते हैं, इसलिए ईशान कोण व मध्य में कभी भी टॉयलेट नहीं बनाना चाहिए। टॉयलेट के दरवाजा हमेशा बन्द रखना चाहिये।

v  सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना अशुभ होता है। सीढ़ियों या टॉयलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिये। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होना अशुभ होता है।

v  उत्तर दिशा के स्वामी धन के देवता कुबेर हैं। आप कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।

v  घर के मुख्यद्वार पर बाहर की ओर फूलों का गुलदस्ता या छोटी घण्टियाँ लगानी चाहिये। अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार मुख्यद्वार के बाहर मांगलिक प्रतीकों को भी लगाना चाहिये जैसे स्वस्तिक, ॐ त्रिशूल इत्यादि इन मांगलिक प्रतीकों के प्रयोग से सौभाग्य, समृद्धि में वृद्धि होती है। इस तरह घर में सौभाग्य को न्यौता देना होता है।

v  मुख्यद्वार पर व उसके आस-पास समुचित सफाई होनी चाहिये ताकि सकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने में किसी प्रकार की रुकावट पैदा न हो। घर में अनावश्यक बेकार कबाड़ रखने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे समृद्धि को नुकसान पहुँचता है।

v   जिस घर में पूजा के दो स्थान होते हैं, उस घर के मुखिया के पास एक से अधिक सम्पत्ति होती है और उस घर के बेटे की आमदनी के स्रोत भी दो होते हैं। - जिन घरों में भोजन बनाने के साधन एक से अधिक जैसे गैस, स्टोव, माइक्रोवेद ओवन इत्यादि होते हैं ऐसे घरों में आय के साधन भी एक से अधिक होते हैं।

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अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा ।

Saturday, February 19, 2022

Atharva Veda progeny from Rati period dates

  


        पति व पत्नी के भावात्मक एकात्मक संबंध में अंग-प्रत्यंग के सम्पर्क से संतान की उत्पत्ति होती है। पुत्र कन्या और क्लीव इन तीनों रूपों में पूर्व जन्म की कर्मानुसार संतानों का जन्म होता है और मृत्यु होती है। यद्यपि मंत्र, मणि और औषध चिकित्सा से संतान उत्पत्ति के अनेक प्रसंग मिलते हैं। तथापि तंत्रोक्त रतिकालीन संबंध कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसके सत्य पाए जाने पर यह प्रकरण यथावत् पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।

        निष्ठीविता अर्थात् रौंध करती हुई गो की तरह धीरे-धीरे चलने वाले आलस्ययुक्त प्रसन्न मन वाली, हृदय में जिसे गर्भाधान की इच्छा हो, ऐसी बीजग्रहण में समर्थ स्त्री की योनि में लिग द्वारा गर्भाधान संस्कार करें। स्त्रियों के ऋतु के स्वाभाविक दिन 16 माने जाते हैं। जिनमें प्रारंभ के 4 दिन निषिद्ध है। शेष दिनों में गर्भाधान करना चाहिए।

        प्रथम चार रात्रियां, ग्यारहवीं रात्रि और तेरहवी रात्रि ये छः दिन तो निदित हैं। शेष दस दिन शुभ माने जाते हैं। युग्म जैसे 2-4-6-8 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में गर्भाधान करने से पुत्रजन्म होता है और अयुग्म जैसे 1-3-5-7 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में संभोग करने से कन्या का जन्म होता है। इसलिए पुत्र की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि रजोधर्म के पश्चात् युग्म दिनों में हो गर्भाधान करें। यदि पुरुष का बीर्य बलवान् हुआ तो पुत्र संतान होगी और यदि स्त्री का रज प्रबल हुआ तो कन्या का जन्म होगा। यदि दोनों के रज वोर्य समान बली हुए तो कभी बालक कभी कन्या होती है। यदि वीर्य क्षीण या अल्प वीर्य होगा तब कन्याए अधिक होगी। चौथी रात्रि में गर्भाधान से जो पुत्र होता है, वह अल्पायु वाला गुणों से रहित, नियम एवं आचार-विचारों को न मानने वाला, दरिद्र और दुःखी रहने वाला होता है। पाचवी रात्रि में गर्भाधान से कन्या उत्पन होती है। छटवी रात्रि में गर्भाधान करने से पुत्र उत्पन्न होता है, सातवी में कन्या परंतु उसके मृत्यु की संभावना अधिक रहती है अतः इसको त्याग देवें आठवों रात्रि में गर्भाधान करने से भाग्यवान् पुत्र उत्पन्न होता है। नवमी रात्रि के संस्कार से सौभाग्यवती कन्या उत्पन्न होती है। दशमी रात्रि में श्रेष्ठ (पुरुष) पुत्र का जन्म होता है। ग्यारहवीं रात्रि में अधर्माचरण करने वाली कन्या होती है और बारहवीं रात्रि में पुरुषों में श्रेष्ठ पुत्र होता है। तेरहवीं रात्रि में गर्भाधान करने से मूर्ख, पापाचरण करने वाली वर्णसंकर संतान उत्पन्न करने वाली तथा दुःख एवं शोकप्रदा दुष्टा कन्या का जन्म होता है। चौदहवाँ रात्रि के गर्भ से धर्मात्मा कृतज्ञ, अपने ऊपर नियंत्रण रखने वाला, तपस्या करने वाला एवं संसार पर अधिकार रखने वाला, पिता के समान पुत्र उत्पन्न होता है। पंद्रहवें दिन गर्भाधान करने से राजवंशों के समान सुंदर, अधिक भाग्यशाली, अधिक सुखो को भोगने वाली तथा पतिव्रता कन्या उत्पन्न होती है। सोलहवीं रात्रि के गर्भ से विद्वान, सत्य बोलने वाला, जितेंद्रीय एवं सबका पालन करने वाला पुत्र उत्पन्न होता है।

गर्भाधान तंत्र

        जो स्त्री गर्भ धारण करने के योग्य हो, परंतु गर्भ नहीं ठहरता हो, सब प्रकार के इलाज करा लेने पर भी लाभ न हो, तो कृपया ये टोटके काम में लें, ईश्वर ने चाहा, तो जरूर लाभ होगा। 1. रविवार को सुगंधरा की जड़ या एकवर्णा गौ के दूध के साथ पीस ऋतुकाल पीने से तथा साठी का भात एवं मूंग की दाल पथ्य खाने से वन्ध्या दोष वीन्स्ट होता है।

        दवा खाते समय स्त्री को किसी प्रकार की चिंता या शोक अथवा भय, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, गर्म चीजों का भोजन, धूप, अधिक ठंड इन सबसे बचना चाहिए। ऐसे पथ्य से रहते हुए पति के साथ सहवास करने से वंध्य अवश्य गर्भवती होती है।

         रजोधर्म शुद्धि के पश्चात् काली अपराजिता की जड़ को बछड़ा वाली नवीन गौ के दूध में तीन दिन पीने से वंध्या गर्भवती होती है।

        पहले ब्याही हुई गाय जिसके साथ बछड़ा हो, ऐसे गौ के दूध के साथ नागकेसर का चूर्ण सात दिन तक पीने से तथा घी-दूध के साथ भोजन करने से बंध्या स्त्री पुत्रवती होती है। 5. नीबू के पुराने पेड़ की जड़ को दूध में पीसकर घी मिला पीने से प्रति प्रसंग द्वारा स्त्री को दीर्घजीवी पुत्र प्राप्त होता है।

 मृतवत्सा तंत्र

                जन्म लेने के पश्चात् जिस स्त्री का पुत्र मर जाता है, उसे मृतवत्सा कहते हैं। जिस रविवार को कृतिका नक्षत्र हो, उस दिन पीत पुष्प नाम की जड़ों को जड़सहित लावे, उसे पानी में सात दिन पर्यन्त पीसकर पीवे तो पुत्र न मरे।

निश्चित पुत्र प्राप्ति का अमोघ उपाय

            अगर कन्याएं हो पैदा हो तो पुत्र प्राप्ति के लिए 'चरण-व्यूह' का पाठ करना चाहिए। वेद पुराणोक्त 'चरण-व्यूह' पाठ के श्रवण मात्र से ही पुत्र रत्न की शत-प्रतिशत प्राप्ति होती है। कलिकाल में 'चरण-व्यूह' विशेष रूप से प्रभावशाली है तथा प्रत्यक्ष चमत्कार बताता है। जब प्रसूति को चौथा या पांचवा महीना चल रहा हो, तब किसी विद्वान् ब्राह्मण अथवा पुरोहित के द्वारा इसका श्रद्धापूर्वक श्रवण किया जाता है। पति भी पाठ पढ़ कर पत्नी को सुना सकता है। केवल अगरबत्ती, दीपक पाठ करते समय लगाना आवश्यक है। नैवेद्य धरे तो उसे दोनों पति-पत्नी जरूर खावे अकेली स्त्री भी इसका पाठ कर सकती है। दोनों पति-पत्नी का यहां बैठना आवश्यक नहीं है। इस क्रम में यदि पूजन करना चाहें तो विष्णु व लक्ष्मी का साथ-साथ चित्र होना चाहिए। ध्यान रहे कि सातवें महीने के बाद इसका प्रयोग निषिद्ध है। इसके श्रवण मात्र से संतान तेजस्वी, पराक्रमी, मेधावी, धर्म-ध्वज व जातिकुल-रक्षक, पौरुषशाली व वंशवृद्धिनी होती है ।

॥ अथ श्रीचरण व्यूहं ॥

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संतान बाधा और उपाय

  (संतानहीन योग ) पंचमेश पापपीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती। राहु या केतु से जात...