Saturday, February 19, 2022

Atharva Veda progeny from Rati period dates

  


        पति व पत्नी के भावात्मक एकात्मक संबंध में अंग-प्रत्यंग के सम्पर्क से संतान की उत्पत्ति होती है। पुत्र कन्या और क्लीव इन तीनों रूपों में पूर्व जन्म की कर्मानुसार संतानों का जन्म होता है और मृत्यु होती है। यद्यपि मंत्र, मणि और औषध चिकित्सा से संतान उत्पत्ति के अनेक प्रसंग मिलते हैं। तथापि तंत्रोक्त रतिकालीन संबंध कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसके सत्य पाए जाने पर यह प्रकरण यथावत् पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।

        निष्ठीविता अर्थात् रौंध करती हुई गो की तरह धीरे-धीरे चलने वाले आलस्ययुक्त प्रसन्न मन वाली, हृदय में जिसे गर्भाधान की इच्छा हो, ऐसी बीजग्रहण में समर्थ स्त्री की योनि में लिग द्वारा गर्भाधान संस्कार करें। स्त्रियों के ऋतु के स्वाभाविक दिन 16 माने जाते हैं। जिनमें प्रारंभ के 4 दिन निषिद्ध है। शेष दिनों में गर्भाधान करना चाहिए।

        प्रथम चार रात्रियां, ग्यारहवीं रात्रि और तेरहवी रात्रि ये छः दिन तो निदित हैं। शेष दस दिन शुभ माने जाते हैं। युग्म जैसे 2-4-6-8 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में गर्भाधान करने से पुत्रजन्म होता है और अयुग्म जैसे 1-3-5-7 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में संभोग करने से कन्या का जन्म होता है। इसलिए पुत्र की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि रजोधर्म के पश्चात् युग्म दिनों में हो गर्भाधान करें। यदि पुरुष का बीर्य बलवान् हुआ तो पुत्र संतान होगी और यदि स्त्री का रज प्रबल हुआ तो कन्या का जन्म होगा। यदि दोनों के रज वोर्य समान बली हुए तो कभी बालक कभी कन्या होती है। यदि वीर्य क्षीण या अल्प वीर्य होगा तब कन्याए अधिक होगी। चौथी रात्रि में गर्भाधान से जो पुत्र होता है, वह अल्पायु वाला गुणों से रहित, नियम एवं आचार-विचारों को न मानने वाला, दरिद्र और दुःखी रहने वाला होता है। पाचवी रात्रि में गर्भाधान से कन्या उत्पन होती है। छटवी रात्रि में गर्भाधान करने से पुत्र उत्पन्न होता है, सातवी में कन्या परंतु उसके मृत्यु की संभावना अधिक रहती है अतः इसको त्याग देवें आठवों रात्रि में गर्भाधान करने से भाग्यवान् पुत्र उत्पन्न होता है। नवमी रात्रि के संस्कार से सौभाग्यवती कन्या उत्पन्न होती है। दशमी रात्रि में श्रेष्ठ (पुरुष) पुत्र का जन्म होता है। ग्यारहवीं रात्रि में अधर्माचरण करने वाली कन्या होती है और बारहवीं रात्रि में पुरुषों में श्रेष्ठ पुत्र होता है। तेरहवीं रात्रि में गर्भाधान करने से मूर्ख, पापाचरण करने वाली वर्णसंकर संतान उत्पन्न करने वाली तथा दुःख एवं शोकप्रदा दुष्टा कन्या का जन्म होता है। चौदहवाँ रात्रि के गर्भ से धर्मात्मा कृतज्ञ, अपने ऊपर नियंत्रण रखने वाला, तपस्या करने वाला एवं संसार पर अधिकार रखने वाला, पिता के समान पुत्र उत्पन्न होता है। पंद्रहवें दिन गर्भाधान करने से राजवंशों के समान सुंदर, अधिक भाग्यशाली, अधिक सुखो को भोगने वाली तथा पतिव्रता कन्या उत्पन्न होती है। सोलहवीं रात्रि के गर्भ से विद्वान, सत्य बोलने वाला, जितेंद्रीय एवं सबका पालन करने वाला पुत्र उत्पन्न होता है।

गर्भाधान तंत्र

        जो स्त्री गर्भ धारण करने के योग्य हो, परंतु गर्भ नहीं ठहरता हो, सब प्रकार के इलाज करा लेने पर भी लाभ न हो, तो कृपया ये टोटके काम में लें, ईश्वर ने चाहा, तो जरूर लाभ होगा। 1. रविवार को सुगंधरा की जड़ या एकवर्णा गौ के दूध के साथ पीस ऋतुकाल पीने से तथा साठी का भात एवं मूंग की दाल पथ्य खाने से वन्ध्या दोष वीन्स्ट होता है।

        दवा खाते समय स्त्री को किसी प्रकार की चिंता या शोक अथवा भय, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, गर्म चीजों का भोजन, धूप, अधिक ठंड इन सबसे बचना चाहिए। ऐसे पथ्य से रहते हुए पति के साथ सहवास करने से वंध्य अवश्य गर्भवती होती है।

         रजोधर्म शुद्धि के पश्चात् काली अपराजिता की जड़ को बछड़ा वाली नवीन गौ के दूध में तीन दिन पीने से वंध्या गर्भवती होती है।

        पहले ब्याही हुई गाय जिसके साथ बछड़ा हो, ऐसे गौ के दूध के साथ नागकेसर का चूर्ण सात दिन तक पीने से तथा घी-दूध के साथ भोजन करने से बंध्या स्त्री पुत्रवती होती है। 5. नीबू के पुराने पेड़ की जड़ को दूध में पीसकर घी मिला पीने से प्रति प्रसंग द्वारा स्त्री को दीर्घजीवी पुत्र प्राप्त होता है।

 मृतवत्सा तंत्र

                जन्म लेने के पश्चात् जिस स्त्री का पुत्र मर जाता है, उसे मृतवत्सा कहते हैं। जिस रविवार को कृतिका नक्षत्र हो, उस दिन पीत पुष्प नाम की जड़ों को जड़सहित लावे, उसे पानी में सात दिन पर्यन्त पीसकर पीवे तो पुत्र न मरे।

निश्चित पुत्र प्राप्ति का अमोघ उपाय

            अगर कन्याएं हो पैदा हो तो पुत्र प्राप्ति के लिए 'चरण-व्यूह' का पाठ करना चाहिए। वेद पुराणोक्त 'चरण-व्यूह' पाठ के श्रवण मात्र से ही पुत्र रत्न की शत-प्रतिशत प्राप्ति होती है। कलिकाल में 'चरण-व्यूह' विशेष रूप से प्रभावशाली है तथा प्रत्यक्ष चमत्कार बताता है। जब प्रसूति को चौथा या पांचवा महीना चल रहा हो, तब किसी विद्वान् ब्राह्मण अथवा पुरोहित के द्वारा इसका श्रद्धापूर्वक श्रवण किया जाता है। पति भी पाठ पढ़ कर पत्नी को सुना सकता है। केवल अगरबत्ती, दीपक पाठ करते समय लगाना आवश्यक है। नैवेद्य धरे तो उसे दोनों पति-पत्नी जरूर खावे अकेली स्त्री भी इसका पाठ कर सकती है। दोनों पति-पत्नी का यहां बैठना आवश्यक नहीं है। इस क्रम में यदि पूजन करना चाहें तो विष्णु व लक्ष्मी का साथ-साथ चित्र होना चाहिए। ध्यान रहे कि सातवें महीने के बाद इसका प्रयोग निषिद्ध है। इसके श्रवण मात्र से संतान तेजस्वी, पराक्रमी, मेधावी, धर्म-ध्वज व जातिकुल-रक्षक, पौरुषशाली व वंशवृद्धिनी होती है ।

॥ अथ श्रीचरण व्यूहं ॥

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