वृष लग्न हो तथा नवमेश
दशमेश का संबंध भाग्य भाव में हो, चतुर्थेश-पंचमेश का संबंध चतुर्थ भाव में हो तो जातक
लक्ष्याधिपति होता है। शनि व मंगल 7 वें भाव में हो तथा उन पर अन्य ग्रहों की दृष्टि
न हो तो दत्तक जाने का योग बनता है। वृष लग्न में मंगल यदि वृश्चिक या मकर राशि में
हो तो "रूचक योग" बनता है। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह
भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है। वृष लग्न में सुखेश सूर्य लाभेश गुरु यदि नवम
भाव में हो तथा नवम भाव मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन प्राप्ति होती है।
वृष लग्न में गुरु+ चंद्र की युति मिथुन, सिंह, कन्या या मकर राशि में हो तो इस प्रकार
के गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन को प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति
को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है। वृष लग्न में
धनेश बुध अष्टम में एवं अष्टमेश गुरु धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो
ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड़रेस, स्मगलिंग
एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है। शेष भाग -Shribalaji- पर देखे ।
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