Sunday, October 24, 2021

अहोई अष्टमी का महत्व, समय, पूजा मुहूर्त, और उजमन अनुष्ठान

 


 जिस वार की दीपावली होती है, अहोई अष्टमी भी उसी वार की होती है। करवा चौथ के समान ही अहोई अष्टमी भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है।    

अष्टमी तिथि का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 12:51 बजे - 29 अक्टूबर, दोपहर 2:10 बजे

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: 28 अक्टूबर, शाम 06.40 बजे - 28 अक्टूबर, शाम 08.35 बजे

करवा चौथ का व्रत स्त्रियों द्वारा पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु किया जाता है, तो अहोई अष्टमी का व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस दिन सायंकाल दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। उस पुतली के पास ही स्याहू माता (सेई) तथा उसके बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। फिर पृथ्वी को शुद्ध और पवित्र कर एक लोटे में जल भरकर, एक पटरे पर कलश की भांति रखकर अहोई माता की कथा सुनी जाती है। पूजा से पहले एक चांदी की अहोई बनवाएं और चांदी के दो मोती भी बनवाएं। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है, उसी प्रकार चांदी की अहोई लगवाएं और डोरे में चांदी के दाने डलवा लें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें। जल से भरे लोटे (कलश) पर सतिया बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा रुपये का बायना निकालकर रख लें और सात दाने गेहूं के लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें तथा जो बायना निकालकर रखा था उसे सास के पांव लगकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें। फिर दीवाली के बाद किसी अच्छे दिन अहोई की माला को उतारकर इसकी पूजा करके और गुड़ का भोग लगाकर, जल के छींटे दें और अगले वर्ष उपयोग के लिए सम्हालकर रख लें। दूसरा पुत्र उत्पन्न होने पर इसी माला में चांदी के दो मोती और डलवा लिए जाते हैं। इस प्रकार उस स्त्री के जितने पुत्र होते हैं और जितने पुत्रों का विवाह हुआ हो उतनी बार दो चांदी के मोती इसमें डालते जाएं। परंतु इस माला में स्याहू के चित्र का पैण्डिल एक ही रहता है। अहोई अष्टमी का यह व्रत दिन भर किया जाता है तथा सायंकाल चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन किया जाता है।

उजमन

जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ियां रखकर, उन पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। साथ ही एक साड़ी ब्लाउज व - रुपये रखकर थाली के चारों तरफ हाथ फेरकर सास के पांव लगकर वह सभी सामान उन्हें दे दें।

बाकि भाग की जानकारी के लिए -Shribalaji- पर क्लिक करे।   

अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा कृपया पोस्ट को लाइक, शेयर व सब्सक्राइब भी करे ।

No comments:

Post a Comment

संतान बाधा और उपाय

  (संतानहीन योग ) पंचमेश पापपीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती। राहु या केतु से जात...