- द्वितीय त्रिकोण अर्थात् कन्या राशि में राहु-शुक्र-मंगल-शनि हो तो जातक कुबेर से भी अधिक धनवान होता है।
- गुरु व चंद्रमा की युति यदि 4,5,9,11वें भाव में से कहीं भी हो तो जातक को यकायक अर्थ प्राप्ति होती है।
- चंद्रमा व मंगल एक साथ 1,4,7,10 केंद्र भावस्थ 5,9 त्रिकोण में अथवा 2,4,11 भाव में कहीं हो तो जातक धनाढ्य होता है
- धनेश तुला राशि में एवं लाभेश मंगल मकर राशिगत अर्थात् लग्न में हो तो जातक धनवान होता है।
- बुध पंचम भावस्थ हो तथा चंद्र, मंगल की युति लाभ भाव में हो तो जातक को यकायक अर्थलाभ होता है।
- चतुर्थेश मंगल व सप्तमेश चंद्रमा सप्तम भाव में ही स्थित हो तो जातक को ससुराल से अर्थ प्राप्ति होती है।
- सप्तमेश चंद्रमा धन भाव में यदि हो तो खोई हुई संपत्ति पुनः प्राप्त होती है, अथवा विवाहोपरांत आर्थिक दशा और अधिक सुदृढ़ होती है
- अष्टमेश पापग्रह से युक्त होकर दशम भावस्थ हो तो राज्य पुरस्कार प्राप्ति करता है अथवा दत्तक माना जाता है और धनी होता है।
- मकर लग्न में यदि बलवान शनि को पंचमेश शुक्र से युति हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति होती है किवा पुत्र जन्म के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।
- द्वादश भाव चंद्रमा से द्वितीय भाव या चंद्र के साथ कोई ग्रह न हो और लग्न से केंद्र में सूर्य को छोड़कर अन्य कोई ग्रह न हो तो वह जातक दरिद्री व निंदित होता है।
- मकर लग्न में बलवान शनि की यदि षष्टेश बुध से युति हो, धनभाव मंगल से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को शत्रुओं के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक कोर्ट-कचहरी में शत्रुओं को हराता है तथा शत्रुओं के कारण ही उसे धन व यश की प्राप्ति होती है
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