गुरु शुक्र दोनों मकर राशि में तृतीय
स्थान में हो तो उस जातक के संचित धन को कुपुत्र उड़ा देते हैं तथा उसे संतान सुख प्राप्त
नहीं होता । गुरु दशम भाव में तथा शनि चतुर्थ भाव में हो तो जातक को भूमि से अत्यधिक
लाभ होता है छठे भाव में बुध हो तो जातक रोगी एवं लक्ष्याधिपति दोनों साथ-साथ होता
है। लग्नेश जहां बैठा हो, उस राशि का स्वामी यदि स्वग्रही या 5/9 भवन में या अपने मूल
त्रिकोण अथवा केंद्र में बैठा हो तो 45 वर्ष में जातक का भाग्योदय होता है तथा वह भूसंपत्ति
प्राप्त करता है. जिस नवांश में उसका स्वामी यदि उच्च राशि में पंचमेश के साथ भाग्य
स्थान में हो तो लक्ष्मीवान, पुत्रवान जातक समृद्धिशाली होता हैं। लग्नेश धन भाव गत
हो या धनेश-लाभेश गुरु, बुध एवं लग्नेश मंगल के साथ लाभस्थ हो तो गुप्त धन की प्राप्ति
होती है। सूर्य लग्न, चंद्र लग्न, लग्नेश तथा शुभ द्वितीय, पंचमेश, गुरु सब की परस्पर
युति या दृष्टि हो तथा जातक धनवान एवं उच्च पदाधिकारी होता है। चन्द्रमा केंद्र में
हो, चंद्रमा उच्च का हो, सूर्य वृश्चिक का लग्न में हो, शुक्र तुला का स्वगृही द्वादश
भावस्थ हो, गुरु केंद्र में हो, बुध चंद्र से 8वें पड़ा हो तो जातक की मासिक आय कई
सहस्र होती है। वृश्चिक लग्न में यदि मीन का गुरु पंचम में हो, पंचम भाव शुभ ग्रहों
से दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति होती है किवा पुत्र जन्म
के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है। अधिक जानकारी/निवारण के लिये Shribalaji- पर क्लिक
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