- जन्मांग में पंचम या नवम भाव से किसी भी प्रकार संबंधित शनि की स्थिति से, किसी समर्थ गुरु के निर्देशन में किया गया भगवती काली का आराधन चारों पुरुषार्थों का साधन बन सकता है ।
- शनि व्रत के सहित भगवान शंकर पर नित्य दूध या तिल तो चढ़ाना ही चाहिए ।
- रात्रि में शिव, हनुमान मंदिर एवं पीपल वृक्ष के नीचे तिल या सरसों के तेल का दीपक भी जलाना चाहिए ।
- काले वस्त्रों एवं तिलान्न का यथा संभव दान एवं उपयोग करना चाहिए।
- शारीरिक व्याधि निवारणार्थ लघुमृत्युंजय का जप एवं हवन कर लिया जाए। गोचर में अनिष्ट शनि के शमन के लिए श्रीमद्भागवत के नल चरित्रका पाठ बहुत लाभप्रद है।
- इसके अतिरिक्त तेल मालिश, सुरमा लगाना तथा नित्य गुग्ल की धूप देना बहत लाभप्रद हैं
- शनि को बलवान करने हेतु एवं धनवृद्धि के लिए नीलमयुक्त "शनियंत्र" धारण करें।
- युकलिप्टस वृक्ष के पत्ते को अपने पास शनिवार के दिन रखें।
- कपूर को खोपरे के तेल में मिलाकर सिर में लगावें।
- शनिमंदिर के दर्शन करें (संध्या समय) ।
- शनि स्तुति का वाचन अथवा श्रवण करें।
- काले उड़द जल में प्रवाहित करें।
- शनि को तेल अर्पण करें।
- काले उड़द का दान भी करें एक मुट्ठी भिखारियों को ही दे ।
- स्टील अथवा लोहे के पात्र में जल भोजनादि ग्रहण करें।
- शनि के होरा में निर्जल रहें।
- उड़द के पापड़ खावें ।
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