Wednesday, March 16, 2022

संतान बाधा और उपाय

 


(संतानहीन योग )

पंचमेश पापपीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती। राहु या केतु से जातक की कुंडली में कालसर्पयोग बनता हो तो जातक के संतान नहीं होती। पंचमेश कमजोर हो तीन केंद्रों में पापग्रह हो तो जातक के संतान नहीं होती। लग्न में मंगल अष्टम में शनि एवं पंचम में सूर्य हो तो जातक का वंश आगे नहीं चलता । चतुर्थ में पापग्रह, सप्तम में शुक्र एवं दसम में चंद्रमा हो तो जातक का वंश आगे नहीं चलता। चतुर्थभाव में पापग्रह हो तथा चंद्रमा से आठवें स्थान में भी पापग्रह हो तो जातक का वंश आगे नहीं चलता। ऐसी अवस्था में समय रहते जातक को वेद पाठी विद्वान् ब्राह्मण से दोष निवृति करा लेनी चाहिए।

संतान बाधा और उपाय :

भारतीय दर्शन आत्मा की अमरता के साथ पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म को मानता है तथा व्यवहारिक रूप से यह विज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा पूर्ण रूप से स्पष्ट मुखरित होता है। जन्म कुंडली के सूक्ष्म अध्ययन से स्पष्टत: पता चलता है कि पिछले अनेक जन्मों में जातक ने क्या-क्या पाप किए। जिसके कारण इस जन्म में संतान नहीं है, या संतान होकर मर जाती है या घर में कुपुत्र उत्पन्न हो रहे हैं। पुत्रोत्पत्ति एवं संतान सुख के लिए यह आवश्यक है कि जो-जो ग्रह बाधाकारक हो, उस उस ग्रह के लिए, जो-जो जप, दान एवं शांति की क्रिया है, वो-वो करे । दोष निवृत्ति से पुत्रोत्पत्ति एवं संतान सुख की संभावना बढ़ जाती है। सेतु स्नान (मंत्र एवं संकल्पपूर्वक समुद्र स्नान), सत्कथाओं के श्रवण कीर्तन, रूद्राभिषेक (शिवपूजा) तथा भगवान विष्णु के वृत, दान, श्राद्ध, नागप्रतिष्ठा (सर्प देवता की मूर्ति प्रतिष्ठा पूजन) आदि करने से संतान की प्राप्ति होती है।

ऐसे दंपत्तियों को पुत्र लाभ हुआ, जो डॉक्टरों के चक्कर काट-काट कई ऑपरेशन करा-करा कर, दवाई खाकर निराश हो गए। विवाह के बीस-बीस वर्ष बीतने पर संतान जिनके नहीं थी। जन्म कुंडली जन्य दोष को निवृत्ति कराने के बाद, कालसर्पयोग की शांति के बाद उन सभी के मनोवांछित संकल्प पूरे हुए तथा ऐसे सभी लोग भारतीय ज्योतिष एवं मंत्र विद्या से पक्के भक्त एवं दीवाने हो गए। यह है ज्योतिष विद्या का सही व सच्चे चमत्कार का परिणाम। 

भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य है तो यह समझना चाहिए कि भगवान शंकर और गरूड़ के द्रोह करने के कारण या पितरों के शाप के कारण जातक को संतान सुख नहीं है। अत: सूर्य के वेदोक्त मंत्रों के सात हजार जप एवं तत्संबंधित वस्तुओं का दान तथा सूर्य को अर्घ्य देते हुए रविवार का नियमित व्रत रखना चाहए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को सिद्धिप्रद देवी की स्थापना करनी चाहिए।

यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह चंद्रमा है तो माता, मौसी, सासु, गुरु पत्नी या किसी अन्य सधवा स्त्री के चित्त को दुःख पहुंचाने के कारण जातक को संतान सुख नहीं है। अत: चंद्रमा के वेदोक्त मंत्रों के ग्यारह हजार जप करने चाहिए। चंद्रमा संबंध वस्तुओं का दान करते हुए सोमवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को शिव की उपासना करनी चाहिए।

यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह मंगल हो तो ग्रामदेवता, भगवान कार्तिक स्वामी, शत्रु अथवा भाई कुटंबीजनों के शाप के कारण जातक को संतान सुख नहीं होता। ऐसे में मंगल के वेदोक्त मंत्रों का दस हजार जप करना चाहिए। मंगल संबंधी वस्तुओं का दान करते हुए मंगलवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को महारूद्र या अतिरूद्र यज्ञ कराना चाहिए।

यदि संतान अवरोधक ग्रह बुध है तो समझिए कि बिल्ली को मारने के कारण या मछलियों तथा अन्य प्राणियों के अंडों को नष्ट करने के कारण, कम उम्र के बालक-बालिकाओं (झडोलिए) के शाप से, भगवान् विष्णु के अनादर के कारण संतान नहीं हो रही है। ऐसे में जातक को बुध के वेदोक्त मंत्र के चार हजार जप करने चाहिए बुध संबंधी वस्तुओं का दान करते हुए बुधवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक का महाविष्णु या अतिविष्णु यज्ञ कर कास्यपात्र दूध में देना चाहिए।

जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति बिगड़ा हुआ है तो ऐसे व्यक्ति ने इस जन्म या पूर्व जन्म में फलदार वृक्षों को कटाया है। कुलगुरु कुल देवता या किसी आदरणीय व्यक्ति का अपमान किया है। जिसके कारण जातक को संतान सुख नहीं होता। ऐसे में जातक को गुरु के वैदिक मंत्रों का 19, 000 जग करने चाहिए गुरु संबंधित वस्तुओं का दान करते हुए वृद्ध लोगों का आदर करते हुए गुरु को सेवा को एवं गुरुवार का नियमित व्रत करें। हरिवंश पुराण के अनुसार पितरों  की तिथि को श्राद्ध यज्ञ करना चाहिए। 

यदि शुक्र के कारण संतान नहीं हो रही है तो समझिए इस व्यक्ति ने फल-पुष्प युक्त वृक्षों को कटवाया है। गौ के प्रति पाप किया। साध्वी स्त्री का शाप गर्भपात बलात्कार का दोष या यक्षिणी का शाप है। ऐसे में शुक्र के वेदोक्त मंत्रों का सोलह हजार जप कराना चाहिए, शुक्र की वस्तुओं के दान करते हुए, शुक्रवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार गौ के पालन व दान में पुत्र अवश्य होगा।

जन्म कुंडली में यदि शनि बिगड़ा हुआ तो ऐसा समझिए कि जातक ने पीपल के वृक्ष कटवाए, मरते वक्त किसी की आत्मा को दु:खाया, निर्धन गरीब की हाय, पिशाच, प्रेत व मृतआत्मा के दोष से जातक को संतान का सुख नहीं है। ऐसे में शनि के वेदोक्त मंत्रों का तैंतीस हजार जप करना चाहिए। शनि संबंधी वस्तुओं का दान करना चाहिए एवं कीड़ि नगरा सींचते हुए शनिवार का नियमित व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार महामृत्युजप का जप व हवन संकल्पपूर्वक करना चाहिए।

यदि राहु के कारण संतान बाधा हो रही है तो सर्प के शाप के कारण ही ऐसा हुआ है। ऐसे में जातक को राहु के वेदोक्त मंत्रों के अठारह हजार जप करते हुए घर में नागपाश यंत्र का नित्य पूजन करना चाहिए। सर्दी में जरूरतमंदों को का दान करना चाहिए एवं बुधवार का व्रत रखना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को पराई कन्या का दान संकल्पपूर्वक करना चाहिए तब पुत्र लाभ होता है।

यदि केतु के कारण संतान बाधा है तो ऐसे में ब्राह्मग का शाप, अपमान के कारण ऐसा हुआ है। ऐसे में जातक को केतु के वेदोक्त मंत्रों के सत्रह हजार जप करने चाहिए। ब्राह्मणों को सम्मान देकर प्रीतिपूर्वक ब्रह्मभोज करा उन्हें संतुष्ट करें, वस्त्र - उपवस्त्र, एवं दक्षिणा देनी चाहिए। इससे केतु का दोष नष्ट हो जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार ऐसे जातक को कपिल वर्ण गाय का दान करना चाहिए।

यदि मांदि पंचम में हो या पंचमेश के साथ हो तो ऐसे में किसी प्रेत के शाप से ऐसा हुआ है । केतु या बृहस्पति भी मांदि के साथ हो तो पूर्व जन्म में किया ब्राह्मण की हत्या संतान में बाधक है। किंतु मांदि यदि शुक्र या चंद्रमा के साथ हो तो व्यक्ति ने गाय या किसी युवति की हत्या पूर्व जन्म में की है। अत: ऐसे में ग्रह शांति कराते हुए संकल्पपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देकर तृप्त करें।

संतान योग पर एक ऐतिहासिक घटना

कथा प्रसिद्ध हैं कि प्राचीनकाल में एक बहह्मण ने ज्योतिष में विशेष पंडिल्य अर्जन किया। उसका विवाह अपने गांव से कुछ दूर दूसरे गांव की कन्या से हो चुका था । ब्राह्मण ने एक ऐसे पुत्र पैदा करने की कल्पना की जो कि बड़ा होकर महान् सम्राट बने। इस उद्देश्य से उस विद्वान् ब्राह्मण ने ज्योतिष विज्ञान के आधार पर गर्भाधान का ऐसा मुहूर्त व लग्न निकाला कि जिससे सम्राट ही पैदा हो पर यह बात उसने अपनी पत्नी को नहीं बतलाई।

सिंह के सूर्य को ध्यान में रखते हुए दो दिन पूर्व भाद्रपद माह में ब्राह्मण अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल चल पड़ा। किन्तु तेज वर्षा के कारण बीच में पड़ने वाली गोदावरी नदी में जलस्तर इतना बढ़ गया कि नदी पार करना कठिन था। ब्राह्मण ने बहुत अनुनय-विनय की पर कोई भी नाविक उफनती हुई गोदावरी में नाव डालने का साहस न कर सका। समय निकलता जा रहा था, नदी के उफान के साथ-साथ ब्राह्मण का मुख मलिन होता जा रहा था। ब्राह्मण की उद्विग्नता और अति मलीन चेहरे को देख कर एक कुम्हार ने उसके दुःख का कारण पूछा। ब्राह्मण ने अपनी सारी कहानी और आकांक्षा उस कुम्हार को सुनाई। ब्राह्मण के दु:ख और तेजस्विता से प्रभावित होकर कुम्हार ने निवेदन किया किया कि नदी को पार करना तो सम्भव नहीं, पर आपकी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है यदि आप मेरी पुत्री से गन्धर्व विवाह कर लें। मेरी पुत्री को आज प्रथम रजोदर्शन का चतुर्थ दिवस । ब्राह्मण ने कुम्हार के प्रस्ताव को स्वीकार कर उसकी पुत्री से गन्धर्व विवाह किया तथा निश्चित मुहूर्त व लग्न में गर्भाधान संस्कार किया। परिणामतः कुम्हार की पत्नी गर्भवती हुई।

निर्धारित समय के बाद कुम्हार की पुत्री से ब्राह्मण के यहाँ एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। जो आगे चलकर राजा शालिवाहन बना। जिसके नाम से दक्षिणी व मध्य भारत में आज भी "शाक्य सम्वत्" चलता है। अब तो यही हमारा राष्ट्रीय सम्वत् है। ज्योतिष शास्त्र एवं संतान योग की व्यवहारिक उपयोगिता पर यह ज्वलंत उदाहरण इसकी सच्चाई का सबसे बड़ा एतिहासिक प्रमाण है।

अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा ।

Saturday, February 26, 2022

धन प्राप्ति के लिए वास्तु कारण और उपाय

 

आज ग्रामीण हो या शहरी, व्यापारी हो या नौकरी पेशा, देश की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत कर्ज में डूबा हुआ है। पहले की तुलना में आजकल कर्जदार लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। आर्थिक कष्ट और बढ़ते कर्ज के कारण आत्महत्या करने का सिलसिला बढ़ता है। रोजाना अखबारों में इस प्रकार की दुःखद खबरें पढ़ने को मिलती है। निश्चित ही इसमें भाग्य के साथ-साथ निवास स्थान या व्यवसाय स्थल का  वास्तुदोष पूर्ण होना भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। व्यक्ति कुछ सामान्य वास्तु नियमों का पालन करे तो निश्चित ही वह अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। पैसों के नुकसान को रोक सकता है और आर्थिक कष्ट एवं कर्ज से मुक्ति पा सकता है।

संभव कारण

v  कभी भी बड़े भवनों के बीच छोटा भूखण्ड न खरीदें। आस-पास के भवनों की तुलना में जो भवन बहुत छोटा होता है, उसमें रहने वाले कभी उचित तरक्की नहीं कर पाते इस कारण गरीबी व कर्ज में डूबे रहते हैं।

v  बाउण्ड्रीवॉल एवं भवन का उत्तर पूर्व (ईशान कोण) दबा कटा, गोल होना काफी अशुभ होता है इस दोष के कारण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसा कोई भी दोष हो तो उसे शीघ्र ही दूर करवाना चाहिये। इसके विपरीत ईशान कोण का बड़ा होना अत्यन्त शुभ होता है।

v   भवन एवं प्लॉट का ईशान कोण वाला भाग नैऋत्य कोण की तुलना में नीचा होना चाहिये। ईशान ऊँचा होने से गृहस्वामी को आर्थिक संकट आते रहते हैं।

v  भवन की उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में भूमिगत पानी की टंकी, कुआँ या बोर होना बहुत शुभ होता है, इससे आर्थिक संपन्नता आती है। उपरोक्त दिशाओं के अलावा का कारण बनता है। भवन के मध्य में तो किसी भी प्रकार का गड्ढा, कुओं, बोरिंग इत्यादि होनेसे गृह स्वामी भयंकर आर्थिक संकट में आ जाता है। अतः दोषपूर्ण गढो को जितना जल्दी हो सके भर देना चाहिए।

v  भवन के मुख्यद्वार के सामने किसी भी प्रकार का वेध जैसे खम्बा, पेड़, खुली नाली इत्यादि होना अशुभ होता है। इस प्रकार का दोष अन्य कष्टों के अलावा आर्थिक कष्ट का कारण बनता है।

v  फंगशुई के अनुसार शयनकक्ष या तिजोरी वाले कमरे के प्रवेशद्वार के सामने वाली दीवार के बायें कोने में सम्पत्ति एवं भाग्य का क्षेत्र होता है। यह कोना कभी भी कटा हुआ नहीं होना चाहिए। यहाँ पर धातु की कोई चीज रखना या लटकाना शुभ होता है।

v  ईशान कोण में टॉयलेट होने से पैसा फलश होता रहता है एवं भवन के मध्य में टॉयलेट होने से आर्थिक संकट आते हैं, इसलिए ईशान कोण व मध्य में कभी भी टॉयलेट नहीं बनाना चाहिए। टॉयलेट के दरवाजा हमेशा बन्द रखना चाहिये।

v  सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना अशुभ होता है। सीढ़ियों या टॉयलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिये। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होना अशुभ होता है।

v  उत्तर दिशा के स्वामी धन के देवता कुबेर हैं। आप कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।

v  घर के मुख्यद्वार पर बाहर की ओर फूलों का गुलदस्ता या छोटी घण्टियाँ लगानी चाहिये। अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार मुख्यद्वार के बाहर मांगलिक प्रतीकों को भी लगाना चाहिये जैसे स्वस्तिक, ॐ त्रिशूल इत्यादि इन मांगलिक प्रतीकों के प्रयोग से सौभाग्य, समृद्धि में वृद्धि होती है। इस तरह घर में सौभाग्य को न्यौता देना होता है।

v  मुख्यद्वार पर व उसके आस-पास समुचित सफाई होनी चाहिये ताकि सकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने में किसी प्रकार की रुकावट पैदा न हो। घर में अनावश्यक बेकार कबाड़ रखने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे समृद्धि को नुकसान पहुँचता है।

v   जिस घर में पूजा के दो स्थान होते हैं, उस घर के मुखिया के पास एक से अधिक सम्पत्ति होती है और उस घर के बेटे की आमदनी के स्रोत भी दो होते हैं। - जिन घरों में भोजन बनाने के साधन एक से अधिक जैसे गैस, स्टोव, माइक्रोवेद ओवन इत्यादि होते हैं ऐसे घरों में आय के साधन भी एक से अधिक होते हैं।

अन्य उपाय संबंधित जानकारी के लिए -:यहां:- क्लिक करे

अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा ।

Saturday, February 19, 2022

Atharva Veda progeny from Rati period dates

  


        पति व पत्नी के भावात्मक एकात्मक संबंध में अंग-प्रत्यंग के सम्पर्क से संतान की उत्पत्ति होती है। पुत्र कन्या और क्लीव इन तीनों रूपों में पूर्व जन्म की कर्मानुसार संतानों का जन्म होता है और मृत्यु होती है। यद्यपि मंत्र, मणि और औषध चिकित्सा से संतान उत्पत्ति के अनेक प्रसंग मिलते हैं। तथापि तंत्रोक्त रतिकालीन संबंध कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसके सत्य पाए जाने पर यह प्रकरण यथावत् पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।

        निष्ठीविता अर्थात् रौंध करती हुई गो की तरह धीरे-धीरे चलने वाले आलस्ययुक्त प्रसन्न मन वाली, हृदय में जिसे गर्भाधान की इच्छा हो, ऐसी बीजग्रहण में समर्थ स्त्री की योनि में लिग द्वारा गर्भाधान संस्कार करें। स्त्रियों के ऋतु के स्वाभाविक दिन 16 माने जाते हैं। जिनमें प्रारंभ के 4 दिन निषिद्ध है। शेष दिनों में गर्भाधान करना चाहिए।

        प्रथम चार रात्रियां, ग्यारहवीं रात्रि और तेरहवी रात्रि ये छः दिन तो निदित हैं। शेष दस दिन शुभ माने जाते हैं। युग्म जैसे 2-4-6-8 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में गर्भाधान करने से पुत्रजन्म होता है और अयुग्म जैसे 1-3-5-7 इत्यादि संख्या वाली रात्रियों में संभोग करने से कन्या का जन्म होता है। इसलिए पुत्र की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि रजोधर्म के पश्चात् युग्म दिनों में हो गर्भाधान करें। यदि पुरुष का बीर्य बलवान् हुआ तो पुत्र संतान होगी और यदि स्त्री का रज प्रबल हुआ तो कन्या का जन्म होगा। यदि दोनों के रज वोर्य समान बली हुए तो कभी बालक कभी कन्या होती है। यदि वीर्य क्षीण या अल्प वीर्य होगा तब कन्याए अधिक होगी। चौथी रात्रि में गर्भाधान से जो पुत्र होता है, वह अल्पायु वाला गुणों से रहित, नियम एवं आचार-विचारों को न मानने वाला, दरिद्र और दुःखी रहने वाला होता है। पाचवी रात्रि में गर्भाधान से कन्या उत्पन होती है। छटवी रात्रि में गर्भाधान करने से पुत्र उत्पन्न होता है, सातवी में कन्या परंतु उसके मृत्यु की संभावना अधिक रहती है अतः इसको त्याग देवें आठवों रात्रि में गर्भाधान करने से भाग्यवान् पुत्र उत्पन्न होता है। नवमी रात्रि के संस्कार से सौभाग्यवती कन्या उत्पन्न होती है। दशमी रात्रि में श्रेष्ठ (पुरुष) पुत्र का जन्म होता है। ग्यारहवीं रात्रि में अधर्माचरण करने वाली कन्या होती है और बारहवीं रात्रि में पुरुषों में श्रेष्ठ पुत्र होता है। तेरहवीं रात्रि में गर्भाधान करने से मूर्ख, पापाचरण करने वाली वर्णसंकर संतान उत्पन्न करने वाली तथा दुःख एवं शोकप्रदा दुष्टा कन्या का जन्म होता है। चौदहवाँ रात्रि के गर्भ से धर्मात्मा कृतज्ञ, अपने ऊपर नियंत्रण रखने वाला, तपस्या करने वाला एवं संसार पर अधिकार रखने वाला, पिता के समान पुत्र उत्पन्न होता है। पंद्रहवें दिन गर्भाधान करने से राजवंशों के समान सुंदर, अधिक भाग्यशाली, अधिक सुखो को भोगने वाली तथा पतिव्रता कन्या उत्पन्न होती है। सोलहवीं रात्रि के गर्भ से विद्वान, सत्य बोलने वाला, जितेंद्रीय एवं सबका पालन करने वाला पुत्र उत्पन्न होता है।

गर्भाधान तंत्र

        जो स्त्री गर्भ धारण करने के योग्य हो, परंतु गर्भ नहीं ठहरता हो, सब प्रकार के इलाज करा लेने पर भी लाभ न हो, तो कृपया ये टोटके काम में लें, ईश्वर ने चाहा, तो जरूर लाभ होगा। 1. रविवार को सुगंधरा की जड़ या एकवर्णा गौ के दूध के साथ पीस ऋतुकाल पीने से तथा साठी का भात एवं मूंग की दाल पथ्य खाने से वन्ध्या दोष वीन्स्ट होता है।

        दवा खाते समय स्त्री को किसी प्रकार की चिंता या शोक अथवा भय, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, गर्म चीजों का भोजन, धूप, अधिक ठंड इन सबसे बचना चाहिए। ऐसे पथ्य से रहते हुए पति के साथ सहवास करने से वंध्य अवश्य गर्भवती होती है।

         रजोधर्म शुद्धि के पश्चात् काली अपराजिता की जड़ को बछड़ा वाली नवीन गौ के दूध में तीन दिन पीने से वंध्या गर्भवती होती है।

        पहले ब्याही हुई गाय जिसके साथ बछड़ा हो, ऐसे गौ के दूध के साथ नागकेसर का चूर्ण सात दिन तक पीने से तथा घी-दूध के साथ भोजन करने से बंध्या स्त्री पुत्रवती होती है। 5. नीबू के पुराने पेड़ की जड़ को दूध में पीसकर घी मिला पीने से प्रति प्रसंग द्वारा स्त्री को दीर्घजीवी पुत्र प्राप्त होता है।

 मृतवत्सा तंत्र

                जन्म लेने के पश्चात् जिस स्त्री का पुत्र मर जाता है, उसे मृतवत्सा कहते हैं। जिस रविवार को कृतिका नक्षत्र हो, उस दिन पीत पुष्प नाम की जड़ों को जड़सहित लावे, उसे पानी में सात दिन पर्यन्त पीसकर पीवे तो पुत्र न मरे।

निश्चित पुत्र प्राप्ति का अमोघ उपाय

            अगर कन्याएं हो पैदा हो तो पुत्र प्राप्ति के लिए 'चरण-व्यूह' का पाठ करना चाहिए। वेद पुराणोक्त 'चरण-व्यूह' पाठ के श्रवण मात्र से ही पुत्र रत्न की शत-प्रतिशत प्राप्ति होती है। कलिकाल में 'चरण-व्यूह' विशेष रूप से प्रभावशाली है तथा प्रत्यक्ष चमत्कार बताता है। जब प्रसूति को चौथा या पांचवा महीना चल रहा हो, तब किसी विद्वान् ब्राह्मण अथवा पुरोहित के द्वारा इसका श्रद्धापूर्वक श्रवण किया जाता है। पति भी पाठ पढ़ कर पत्नी को सुना सकता है। केवल अगरबत्ती, दीपक पाठ करते समय लगाना आवश्यक है। नैवेद्य धरे तो उसे दोनों पति-पत्नी जरूर खावे अकेली स्त्री भी इसका पाठ कर सकती है। दोनों पति-पत्नी का यहां बैठना आवश्यक नहीं है। इस क्रम में यदि पूजन करना चाहें तो विष्णु व लक्ष्मी का साथ-साथ चित्र होना चाहिए। ध्यान रहे कि सातवें महीने के बाद इसका प्रयोग निषिद्ध है। इसके श्रवण मात्र से संतान तेजस्वी, पराक्रमी, मेधावी, धर्म-ध्वज व जातिकुल-रक्षक, पौरुषशाली व वंशवृद्धिनी होती है ।

॥ अथ श्रीचरण व्यूहं ॥

अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा कृपया पोस्ट को लाइक, शेयर व सब्सक्राइब भी करे ।

संबन्धित शेष जानकारी के लिए --यँहा-- क्लिक करे

Friday, January 28, 2022

Heartburn, suffering from diseases, no peace in house, do these measures

 



  • फिर इनमें से किसी एक को बोलकर प्रणाम करें और ऐसा दिन में कई बार कर सकते हैं।1. या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।। 12. बुद्धिहीन तनु जानिक सुमिरौं पवनकुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मम हरहु कलेस विकार ।। 3. ॐ घृणिः सूर्य आदित्यः । 4. मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्राँचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।। पानी पीते समय गिलास के पानी को मुंह के पास ले जाकर ॐ हंस हंसः । को बीस बार जप कर पानी पिएं।
  • रात में सोने से पहले बबूल, मिसवाक या नमक वाले टूथपेस्ट से ब्रश करें। सप्ताह में कम से कम एक बार पालक, मूली, बथुआ, मेथी, चौलाई आदि पत्तेदार सब्जी लें। हरो सौंफ छोटी इलायची और मिश्री का सेवन करें।

घर में सुख शान्ति के लिए

  • घर की कर्ताधर्ता महिला रविवार, मंगलवार शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ करे।
  • पीछे बताए गए बरकत वाले उपायों का पालन करें।
  • रसोई में खड़े होकर या खाना बनाते परोसते खाते समय कटु तीखा और . उलाहना भरा वाक्य न बोलें।
  •  गंगाजल या तीर्थजल में चांदी का सिक्का आदि डालकर शयनकक्ष में टांड पड़छत्ती आदि में रखें। 
  • सुबह शाम घर में धूप दीप और कपूर जलाएं और इन मंगल श्लोकों का पाठ करें श्री गणेशाय नमः सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।।धूम्रकेतुः गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।। मंगलं भगवान् विष्णुमंगलं गरुडध्वजः। मंगलं पुण्डरीकाक्षो मंगलायतनं हरिः ।। • सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ।। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ।।  मातरं पितरं वन्दे तथा विद्याप्रदं गुरुम् । कुलदेवीं च चन्द्राक ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् ।।
  • शयनकक्ष में सदा खुशबूदार मोमबत्ती, कपूर स्वाभाविक खुशबू वाला स्प्रे प्रयोग करें।
  • कमरों में पोदीने की टहनियां ट्यूबलाइट या बल्ब के पास टांग दें । सोने के कमरे में दर्पण सदा ऐसे रखें जिससे लेटे व्यक्ति का प्रतिबिम्ब न दिखे। बीम के नीचे सोना अशुभ है।

अधिक जानकारी/निवारण के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

Monday, January 17, 2022

राहु की शांति के विविध उपाय

 



  • राहु मंत्र का जप-हवन और भार्गव ऋषि प्रणीत लक्ष्मी-हृदय का पाठ करें, साथ ही शनि का व्रत करें, क्योंकि  "शनिवट् राहु" प्रसिद्ध ही है ।
  • औषधि स्नान एवं गूगल की नित्य धूप देना भी लाभप्रद है।
  •  सुयोग्य आचार्य से प्राप्त छिन्नमस्ता मां का मंत्र भी चमत्कारिक फल कर सकता है।
  •  यह बटुक भैरव प्रयोग भी लाभकारक रहेगा ।
  •  द्वादशभावस्थ शनि राहु के कुयोग से खोई हुई वस्तुएं या हानि के लिए कार्तवीर्यार्जुन मंत्र का प्रयोग अभीष्टप्रद रहता है ।
  • राहुकृत प्रेत बाधा या अभिचार सुरक्षा के लिए प्रत्यंगिरा मंत्र अथवा नृसिंह कवच का प्रयोग करें ।
  • उत्तम गोमेद और राहु यंत्र धारण भी लाभप्रद रहेगा।
  •  नित्य देवी पूजन और यथाशक्ति काले पदार्थों का दान करते रहना चाहिए ।
  •  राहु को प्रसन्न करने हेतु गोमेदयुक्त "राहुयंत्र" धारण करें।
  •  "नवनाथ" के 13 परायण करें।
  •  शिवजी पर बिल पत्र चढ़ावे ।
  • श्रावण में प्रति सोमवार लघुरुद्र पाठ करें।
  • शिव मंदिर के नियमित दर्शन करें।
  •  नागपंचमी को ताम्र अथवा रजत का नाग बनवाकर उस पूजा स्थान पर स्थापित कर उसको नियमित हल्दी, कुंकुम, नैवेद्य आदि से पूजन करें। कार्य हो जाने पर उन्हें ठंडा कर दें।
  •  शनि की होरा में निर्जल रहें।
  •  धत्तूरे के पुष्प शिवजी पर चढ़ावें।
  • लोहे के पात्र में जलादि ग्रहण करें।

अधिक जानकारी/निवारण के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

Saturday, January 8, 2022

मैं अपने शनि को कैसे खुश रखूँ

 



  1. जन्मांग में पंचम या नवम भाव से किसी भी प्रकार संबंधित शनि की स्थिति से, किसी समर्थ गुरु के निर्देशन में किया गया भगवती काली का आराधन चारों पुरुषार्थों का साधन बन सकता है ।
  2. शनि व्रत के सहित भगवान शंकर पर नित्य दूध या तिल तो चढ़ाना ही चाहिए ।
  3.  रात्रि में शिव, हनुमान मंदिर एवं पीपल वृक्ष के नीचे तिल या सरसों के तेल का दीपक भी जलाना चाहिए ।
  4.  काले वस्त्रों एवं तिलान्न का यथा संभव दान एवं उपयोग करना चाहिए। 
  5. शारीरिक व्याधि निवारणार्थ लघुमृत्युंजय का जप एवं हवन कर लिया जाए। गोचर में अनिष्ट शनि के शमन के लिए श्रीमद्भागवत के नल चरित्रका पाठ बहुत लाभप्रद है।
  6.  इसके अतिरिक्त तेल मालिश, सुरमा लगाना तथा नित्य गुग्ल की धूप देना बहत लाभप्रद हैं
  7. शनि को बलवान करने हेतु एवं धनवृद्धि के लिए नीलमयुक्त "शनियंत्र" धारण करें। 
  8.  युकलिप्टस वृक्ष के पत्ते को अपने पास शनिवार के दिन रखें।
  9. कपूर को खोपरे के तेल में मिलाकर सिर में लगावें। 
  10. शनिमंदिर के दर्शन करें (संध्या समय) ।
  11.  शनि स्तुति का वाचन अथवा श्रवण करें। 
  12. काले उड़द जल में प्रवाहित करें।
  13. शनि को तेल अर्पण करें। 
  14. काले उड़द का दान भी करें एक मुट्ठी भिखारियों को ही दे ।
  15.  स्टील अथवा लोहे के पात्र में जल भोजनादि ग्रहण करें। 
  16. शनि के होरा में निर्जल रहें।
  17. उड़द के पापड़ खावें ।

अधिक जानकारी/निवारण के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

Thursday, December 30, 2021

शुक्र कब शुभ या पाप

 



लग्नानुसार वृष, मिथुन, तुला, मकर, कुम्भ, मीन राशियों में शुक्र शुभ होता है। लेकिन स्त्रक्षेत्री शुक्र खानेपीने के वक्त भी किसी कारण तनाव, आशंकाएं और कठिनाई पैदा करता है। कर्क, सिंह, कन्या राशियों में मध्यम और मेष, वृश्चिक, धनु में अशुभ होता है।

. शुक्रवार, दोपहर और रात का समय अर्थात् सोने के वक्त, वक्री, उदित अधिक वली होता है। कुण्डली में सूर्य के साथ या बिल्कुल पीछे कमजोर होता है। गुरु साथ हों तो शुक्र अशान्त रहता है।

• कुण्डली में शनि कमजोर हो तो शुक्र के सुख कम होते जाएंगे। यदि शनि बली हो तो शुक्र के शुभ फल बढ़ते हैं। शुक्र और शनि साथ हों तो सूर्य के शुभ फल घट जाते हैं।

सप्तमेश या सप्तम से इसका सम्बन्ध बने तो पत्नी और सन्तान के कष्ट होता है। शुक्र केतु साथ हों तो सन्तान का कष्ट बनता है। कारण अकेला शुक्र सदा मध्यम होता है। कोई ग्रह साथ हो तो उसे अपने अच्छे बुरे फल दे देता है।

शुक्र के साथ राहु या मंगल हो तो विवाहित जीवन में बाधा आती है। शुक्र चन्द्र का योग बने तो माता के लिए कष्ट के योग बनते हैं।

शुक्र गुरु का सम्बन्ध हों तो घर की स्त्रियों में तालमेल की कमी और उससे तनाव होता है।

अधिक जानकारी/निवारण के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

संतान बाधा और उपाय

  (संतानहीन योग ) पंचमेश पापपीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती। राहु या केतु से जात...