Wednesday, October 27, 2021

कर्क लग्न में धन की स्थिति दूसरा भाग

 

प्रथम भाग का शेष:-

गुरु लाभ भाव में हो तथा चंद्रमा गुरु के साथ हो। सूर्य लग्न में हो, बुध, शुक्र की युति द्वितीय भाव में हो तो जातक को देव कृपा से अर्थ लाभ होता है। शुक्र, मिथुन का हो द्वादश भाव में, लग्न में सूर्य, तृतीयेश बुध हो तो जातक साधारण अर्थोपार्जन कर आजीविका चलाता है। कर्क लग्न में मंगल यदि मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो "रूचकयोग" बनता है। ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है। कर्क लग्न में सुखेश शुक्र, नवम भाव में शुभ ग्रह से युति किए हुए मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन की प्राप्ति होती है। कर्क लग्न में गुरु + चंद्र की युति सिंह, तुला, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो इस प्रकार के 'गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है। कर्क लग्न में धनेश सूर्य अष्टम में तथा अष्टमेश शनि धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड्रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है। कर्क लग्न में तृतीयेश बुध लाभस्थान में एवं लाभेश शुक्र, तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसे व्यक्ति को भाई, मित्र, भागीदारी, लेखनी, प्रकाशन एवं बुद्धिबल के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। कर्क लग्न में बलवान सूर्य के साथ यदि चतुर्थेश शुक्र की युति हो तो व्यक्ति माता के द्वारा, नौकर एवं वाहन के द्वारा धन अर्जित करता है।

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कर्क लग्न और धनयोग भाग एक


 

विशेष योगायोग

कर्क लग्न के लिए कुछ विशेष योग इस प्रकार है:- 

सफलयोग -   1,चंद्र+मंगल,    2. चंद्र गुरु     3. मंगल+ गुरु,   4. + मंगल + शनि

निष्फलयोग -      1. गुरु + शुक्र,      2. गुरु + शनि ।

अशुभयोग -          1. मंगल+ शुक्र ।

राजयोग कारक -   केवल मंगल ही है ।

लक्ष्मी योग –   मंगल केंद्र त्रिकोण में, सूर्य द्वितीय, पंचम या नवम में चंद्रमा लग्न या एकादश में । 

कर्क लग्न में सूर्य, सिह या मेष राशि में हो तो जातक धनाध्यक्ष होता है। धन के मामले में लक्ष्मी उसका पीछा नहीं छोड़ती। कर्क लग्न में धनेश सूर्य, मीन राशि में तथा बृहस्पति, सिंह राशि में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हों तो जातक भाग्यशाली होता है तथा अत्यधिक धन कमाता हुआ लक्ष्मीवान होता है। कर्क लग्न में बृहस्पति कर्क या मीन राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। ऐसा जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है। कर्क लग्न में सूर्य शुक्र के घर में तथा शुक्र सूर्य के घर में अर्थात् सूर्य वृष या तुला राशि में तथा शुक्र सूर्य में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है तथा जीवन में अत्यधिक धन अर्जित करता है। कर्क लग्न में मंगल केंद्र या त्रिकोण में कहीं भी चंद्रमा के साथ हो तो जातक 28 वर्ष की आयु के बाद खूब धन कमाता है तथा कीचड़ में कमल की तरह खिलता हुआ सामान्य परिवार में जन्म लेकर धीरे-धीरे ! प्रचुर मात्रा में द्रव्य कमाता हुआ लक्षाधिपति एक करोड़पति तक हो जाता है।

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Sunday, October 24, 2021

अहोई अष्टमी का महत्व, समय, पूजा मुहूर्त, और उजमन अनुष्ठान

 


 जिस वार की दीपावली होती है, अहोई अष्टमी भी उसी वार की होती है। करवा चौथ के समान ही अहोई अष्टमी भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है।    

अष्टमी तिथि का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 12:51 बजे - 29 अक्टूबर, दोपहर 2:10 बजे

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: 28 अक्टूबर, शाम 06.40 बजे - 28 अक्टूबर, शाम 08.35 बजे

करवा चौथ का व्रत स्त्रियों द्वारा पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु किया जाता है, तो अहोई अष्टमी का व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस दिन सायंकाल दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। उस पुतली के पास ही स्याहू माता (सेई) तथा उसके बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। फिर पृथ्वी को शुद्ध और पवित्र कर एक लोटे में जल भरकर, एक पटरे पर कलश की भांति रखकर अहोई माता की कथा सुनी जाती है। पूजा से पहले एक चांदी की अहोई बनवाएं और चांदी के दो मोती भी बनवाएं। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है, उसी प्रकार चांदी की अहोई लगवाएं और डोरे में चांदी के दाने डलवा लें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें। जल से भरे लोटे (कलश) पर सतिया बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा रुपये का बायना निकालकर रख लें और सात दाने गेहूं के लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें तथा जो बायना निकालकर रखा था उसे सास के पांव लगकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें। फिर दीवाली के बाद किसी अच्छे दिन अहोई की माला को उतारकर इसकी पूजा करके और गुड़ का भोग लगाकर, जल के छींटे दें और अगले वर्ष उपयोग के लिए सम्हालकर रख लें। दूसरा पुत्र उत्पन्न होने पर इसी माला में चांदी के दो मोती और डलवा लिए जाते हैं। इस प्रकार उस स्त्री के जितने पुत्र होते हैं और जितने पुत्रों का विवाह हुआ हो उतनी बार दो चांदी के मोती इसमें डालते जाएं। परंतु इस माला में स्याहू के चित्र का पैण्डिल एक ही रहता है। अहोई अष्टमी का यह व्रत दिन भर किया जाता है तथा सायंकाल चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन किया जाता है।

उजमन

जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ियां रखकर, उन पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। साथ ही एक साड़ी ब्लाउज व - रुपये रखकर थाली के चारों तरफ हाथ फेरकर सास के पांव लगकर वह सभी सामान उन्हें दे दें।

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अगर आप ज्योतिष या वास्तु सबन्धित कोई प्रश्न पूछना चाहते है तो कमेंट बॉक्स में अपनी जन्म तिथि, समय और जन्म स्थान के साथ प्रश्न भी लिखे समय रहते आपको जवाब दिया जायेगा कृपया पोस्ट को लाइक, शेयर व सब्सक्राइब भी करे ।

Friday, October 22, 2021

घर बनाने में पुरानी सामग्री का प्रयोग

 


लगभग सभी वास्तुविद अपनी पुस्तकों में भवन निर्माण में तोड़े गए भवन से निकली पुरानी सामग्री जैसे ईंट, पत्थर, सरिया एंगल, गार्डर, खिड़की-दरवाजे इत्यादि का उपयोग वास्तु सम्मत ना मानते हुए इसके उपयोग का विरोध करते हैं। उनके अनुसार पुरानी सामग्री के उपयोग से वास्तुदोष उत्पन्न होता है। मैंने भी अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तकों में भवन निर्माण में पुरानी सामग्री उपयोग नहीं करने की सलाह दी है, किंतु यह धारणा बिलकुल गलत है। वास्तुशास्त्र के किसी प्रामाणिक ग्रन्थ में इस तरह की कोई बात मेरे अध्ययन में नहीं आई है। मेरे पिछले कई वर्षों के व्यावहारिक अनुभव में यह आया है कि. पुरानी सामग्री के उपयोग से एक प्रतिशत भी वास्तुदोष उत्पन्न नहीं होता है। मैंने ही ऐसे घर देखे हैं, जिन्होंने पुरानी सामग्री का उपयोग कर वास्तुनुकूल घर का निर्माण किया और वे परिवार सहित सुखद- सरल और समृद्धशाली जीवन व्यतीत कर रहे हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चाहे भवन निर्माण की सामग्री नई हो या पुरानी, सुखद जीवन के लिए निर्माण वास्तुनुकूल होना चाहिए।

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सम्मत वाटर टैंक दिलाता है सुख समृदि और उत्तम स्वास्थ्य

 


जल का स्थान भूमिगत पानी की टंकी, कुआँ, बोरिंग, सेप्टिक टैंक इत्यादि किसी भी रूप में हो सकता है। विभिन्न दिशाओं में इन स्रोतों का प्रभाव इस प्रकार होता है।

 पूर्व ईशान - सुख समृद्धि, वंश वृद्धि एवं गृहस्वामी यशस्वी बनेंगे।

पूर्व- • ऐश्वर्य प्राप्ति एवं संतान की तरक्की ।

पूर्व आग्नेय- - पुत्र को कष्ट, अर्थनाश एवं अग्नि-भय।

दक्षिण आग्नेय--  गृहिणी अस्वस्थ एवं भय की शिकार।

दक्षिण-- स्त्रियों को मानसिक बीमारियाँ, आर्थिक एवं शारीरिक कष्ट।

 दक्षिण नैत्रत्य- स्त्रियाँ ज्यादा अस्वस्थ कर्ज एवं चरित्रहीनता।

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Monday, October 18, 2021

धन योगायोग तथा वृष लग्न द्वितीया भाग

 



वृष लग्न हो तथा नवमेश दशमेश का संबंध भाग्य भाव में हो, चतुर्थेश-पंचमेश का संबंध चतुर्थ भाव में हो तो जातक लक्ष्याधिपति होता है। शनि व मंगल 7 वें भाव में हो तथा उन पर अन्य ग्रहों की दृष्टि न हो तो दत्तक जाने का योग बनता है। वृष लग्न में मंगल यदि वृश्चिक या मकर राशि में हो तो "रूचक योग" बनता है। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है। वृष लग्न में सुखेश सूर्य लाभेश गुरु यदि नवम भाव में हो तथा नवम भाव मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन प्राप्ति होती है। वृष लग्न में गुरु+ चंद्र की युति मिथुन, सिंह, कन्या या मकर राशि में हो तो इस प्रकार के गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन को प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है। वृष लग्न में धनेश बुध अष्टम में एवं अष्टमेश गुरु धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड़रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है। शेष भाग -Shribalajiपर देखे ।


Wednesday, October 13, 2021

पापंकुशा एकादशी कथा, अनुष्ठान और महत्व

 



इस वर्ष यह त्यौहार 16 अक्टूबर 2021 को मनाया जाएगा । पापंकुशा एकादशी का दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा करने के लिए मनाया जाता है जो भगवान विष्णु के अवतार (अवतार) हैं। देवता का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने और इस ब्रह्मांड की कई विलासिता का आनंद लेने के लिए भक्त एक पापंकुशा एकादशी का व्रत रखते हैं। इसे सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक माना जाता है क्योंकि इस व्रत को रखने वाले भक्तों को सांसारिक इच्छाओं, धन और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जब तक वे पापंकुशा एकादशी व्रत का पालन नहीं करते हैं, तब तक व्यक्तियों को पिछले सभी पापों और गलत कार्यों से मुक्त नहीं किया जा सकता है। यह भी माना जाता है कि इस व्रत का फल और लाभ कई अश्वमेध यज्ञों और सूर्य यज्ञों को करने से प्राप्त लाभ के बराबर होता है। शेष भाग -Shribalaji- पर देखे ।

Friday, October 8, 2021

दुर्गा अष्टमी 2021 की तिथि मुहूर्त व पूजा विधि

 


        ऐसा माना जाता है की दुर्गा अष्टमी दुष्ट भैंस राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का जश्न के उपलक्ष में मनाया जाता है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा द्वारा दिए गए एक वरदान के कारण, महिषासुर को केवल एक महिला योद्धा ही पराजित कर सकती थी। जब भगवान इंद्र को युद्ध के मैदान में परास्त किया गया था व पवित्र त्रिमूर्ति, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी ने दुर्गा की रचना की और उनके शरीर के प्रत्येक भाग को विभिन्न पुरुष देवताओं की ऊर्जाओं की शक्ति प्रदान की। इसी दिन दुर्गा अष्टमी के रोज उन्होंने अपने त्रिशूल से महिषासुर को हराने के लिए अपनी ताकत का प्रतीक हथियारों का इस्तेमाल किया था।

 दुर्गा अष्टमी 2021 की तिथि व विधि

दुर्गा अष्टमी, हिंदू कैलेंडर के पंचांग अनुसार कहा गया है कि इस वर्ष दुर्गा अष्टमी तिथि का समय 13 अक्टूबर, 2021 को दोपहर बाद 20:10 बजे तक रहेगी।

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Tuesday, October 5, 2021

नवरात्रि उत्सव में कुछ नियम

 

 


  • हालांकि नवरात्रि उत्सव में कुछ सख्त नियम शामिल होते हैं, कुछ प्रथाएं प्रकृति में काफी लचीली होती हैं। नवरात्रि उत्सव मनाने की कुछ प्रथाएँ हैं:
  • पूरे उपवास की अवधि के लिए केवल फल और दूध पर टिके रहना।  'प्रार्थना' और लंबे ध्यान सत्रों में खुद को शामिल करना। पूरी रात जागकर परिवार के सदस्यों के साथ 'भजन' में भाग लेना। 'दुर्गा शप्तशती' को पढ़कर और 'व्रत कथा' या मां दुर्गा के नौ रूपों से संबंधित कहानियों/प्रकरणों को सुनकर मन को आध्यात्मिक गतिविधियों पर केंद्रित रखना। मां दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करने के लिए हर दिन अलग-अलग रंग पहनना जैसे पहले दिन लाल। मां दुर्गा की मूर्ति/तस्वीर पर प्रतिदिन ताजे फूलों की माला बांधें। दान करना जिसमें जरूरतमंदों को भोजन दान करना शामिल है। शुभ समय में शुद्ध विचार करना। दिन में केवल एक बार भोजन करना, बिना प्याज और लहसुन के शाकाहारी व्यंजन। पूरी अवधि के लिए देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने 'अखंड ज्योत' या लगातार जलता हुआ 'तेल का दीपक' जलाना। नौ ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए नौ प्रकार के अनाज का रोपण। मां दुर्गा की मूर्ति/तस्वीर के सामने 'आरती' करना। इस दौरान चमड़े के जूते पहनने, हजामत बनाने, नाखून काटने या बाल काटने से परहेज करें। काले रंग के कपड़े पहनने से बचें। विवाहित महिलाओं को आमंत्रित करना और उन्हें शुभ सुपारी और नारियल देकर विदा करना। नौ कन्याओं की पूजा करके और उनके लिए विशेष भोजन बनाकर दुर्गा मां के नौ रूपों का सम्मान करना। अष्टमी (आठवें दिन)/नवमी (नौवें दिन) के साथ नए उद्यम या नई खरीदारी शुरू करने का दिन। नवरात्रि पर्व के पहले, चौथे और सातवें दिन ही व्रत का चुनाव करना। उपरोक्त के अलावा, एक भक्त नवरात्रि के दौरान उपवास जारी नहीं रखने का विकल्प चुन सकता है यदि किसी कारण से वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है। शेष भाग के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

Monday, October 4, 2021

पितृ विसर्जन या आश्विन कृष्ण अमावस्या

 



आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन या आश्विन कृष्ण अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पितर लोक से आए हुए पित्तीश्वर महालय भोजन में तृप्त हो अपने लोक को जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त होते हैं। जाते समय वे अपने पुत्र, पौत्रों पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं। इस दिन स्त्रियां संध्या समय दीपक जलाने की बेला में पूड़ी, मिष्ठान्न अपने दरवाजों पर रखती हैं। जिसका तात्पर्य यह होता है कि पितर जाते समय भूखे न जाएं। इसी प्रकार दीपक जलाकर पितरों का मार्ग आलोकित किया जाता है। श्राद्ध पक्ष अमावस्या को ही पूर्ण हो जाते हैं।

इस अमावस्या का श्राद्धकर्म और तान्त्रिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। भूले-भटके पितरों के नाम का ब्राह्मण तो इस दिन जिमाया ही जाता है, साथ ही यदि किसी कारणवश किसी तिथि विशेष को श्राद्धकर्म नहीं हो पाता, तब उन पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस अमावस्या के दूसरे दिन से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो जाते हैं। यही कारण है कि मां दुर्गा के प्रचण्ड रूपों के आराधक और तंत्र साधना करने वाले इस अमावस्या की रात्रि को विशिष्ट तान्त्रिक साधनाएं भी करते हैं। पितृ विसर्जन अमावस्या सर्व पितृ अमावस्या का हिंदू कैलेंडर में बहुत महत्व है। इसे पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहते हैं। इस बार यह अमावस्या 06 अक्टूबर 2021 को है। इस दिन तर्पण, पिंडदान, दान आदि का विशेष महत्व होता है। सर्व पितृ शब्द सभी पूर्वजों को दर्शाता है। इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है या याद नहीं है। शेष भाग के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे।

Friday, October 1, 2021

घर के लिए सामान्य दोषों के वास्तु उपाय

 

  • यदि आपको वास्तु दोष पर संदेह है, तो छह या आठ खोखली छड़ों वाली विंड चाइम्स का उपयोग करें, क्योंकि इससे अच्छी ऊर्जा में वृद्धि होती है।
  • एक घोड़े की नाल को ऊपर की ओर इंगित करते हुए लटकाएं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह सभी अच्छी ऊर्जाओं को आकर्षित और समाहित करता है। इसके लिए मुख्य द्वार एक आदर्श स्थान है। लिविंग रूम में अपने परिवार की तस्वीरें लटकाने से रिश्तों में मजबूती आ सकती है और सकारात्मकता आ सकती है।
  • वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार, आस-पास की वस्तुओं को व्यवस्थित या ठीक करके, रहने वालों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ाने के लिए सकारात्मक वाइब्स को भी आकर्षित किया जा सकता है। यदि बाथरूम सीधे रसोई के विपरीत है, तो दरवाजा बंद रखें और इन विरोधी ऊर्जाओं को अलग करने और नकारात्मक ऊर्जा को रोकने के लिए दरवाजे की चौखट पर एक वास्तु ऊर्जा विभाजन का उपयोग करें। दर्पण ऊर्जा को वापस उछालते हैं। इसलिए, यदि जिस बिस्तर पर कोई सोता है, वह दर्पण की रेखा में है, तो बेहतर नींद के लिए दर्पण को हटा देना या उसे ढंकना उचित है। तुलसी का पौधा घर के लिए जरूरी है, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है । इसी प्रकार की अन्य  जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग -planetsandluck- पर भी क्लिक कर देखे….

 


सकारात्मक ऊर्जा के लिए डेकोरेशन टिप्स

  • घर को साफ-सुथरा रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अव्यवस्था स्थिर ऊर्जा पैदा करती है और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बाधित करती है। चिपकी, फटी या टूटी-फूटी चीजों को रखने से बचें। अलमारी और दराज को साफ करें और उन चीजों को साफ करें जो अब उपयोग में नहीं हैं। यदि किसी के पास बेड बॉक्स है, तो नियमित रूप से जगह खाली करें और उसे व्यवस्थित रखें।
  • घर को साफ रखें और सुनिश्चित करें कि कोई मकड़ी का जाला न हो। पानी में कुछ चम्मच समुद्री नमक मिलाएं और इससे फर्श को पोछें। ऐसा माना जाता है कि नमक के पानी से घर को पोंछने से नकारात्मक स्पंदनों का प्रभाव कम हो जाता है।
  • ताजी हवा और धूप घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप सुबह के कुछ समय के लिए घर की खिड़कियां खुली रखें। एक्वैरियम बहते पानी के समान होते हैं और इसे उत्तर-पूर्व की ओर रखने पर शुभ होता है।
  • मुख्य द्वार के सामने पेड़, खंभा या खंभा लगाने से बचें। इसे द्वार वेद (द्वार बाधा) कहा जाता है। इसी तरह, दरवाजे के पास मृत पौधे रखने से बचें।
  • बाथरूम का दरवाजा बंद रखें। जब उपयोग में न हो तो शौचालय का ढक्कन हमेशा नीचे रखें। सुनिश्चित करें कि घर में कोई लीकिंग नल नहीं है। बाथरूम में सुखद फ्रेशनर का प्रयोग करें। सभी इलेक्ट्रॉनिक और वाई-फाई सिस्टम बंद कर दें, जबकि आराम करते समय सभी इलेक्ट्रॉनिक और वाई-फाई सिस्टम बंद कर दें।
  • सुनिश्चित करें कि फर्नीचर के किनारे तेज नहीं हैं। घर की साज-सज्जा में लाल, काले और भूरे रंग के अत्यधिक प्रयोग से बचें। फर्श में विभाजित स्तर होने से बचें। किचन में दवाई न रखें।  सुबह कुछ समय के लिए घर पर सुखदायक दिव्य संगीत या मंत्रों का जाप करें।
  • घर की तस्वीरें हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए। युद्ध, अकेलेपन, गरीबी आदि को दर्शाने वाली तस्वीरों से बचें। सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए प्रकृति के चित्र प्रदर्शित करें।
  • घर पर एक शांत प्रभाव के लिए, एक दीया, कपूर जलाएं या चंदन की तरह सुखदायक सुगंध जोड़ें। आवश्यक तेल नकारात्मक ऊर्जा को साफ करते हैं और घर में सकारात्मकता को बढ़ाते हैं, इसकी सुगंधित सुगंध के साथ। सिट्रोनेला और दालचीनी घर को शुद्ध करने के लिए अच्छे हैं।
  • एक बर्तन में कुछ तेज पत्ते जलाने से घर से नकारात्मक और हानिकारक ऊर्जा बाहर निकल जाती है।
  • अपने घर के प्रवेश द्वार पर कचरा न रखें। टूटी कटलरी के प्रयोग से बचें। उन सभी वस्तुओं का निपटान करें जिनका आप लंबे समय से उपयोग नहीं कर रहे हैं। सीढ़ियों के नीचे या शयन कक्ष में पूजा कक्ष नहीं बनाना चाहिए।
  • मुख्य द्वार के पास हवा की झंकार या घंटी लटकाएं। वास्तु शास्त्र के अनुसार सुखदायक संगीत की ध्वनि घर में समृद्धि और धन को आकर्षित करती है। तो, रोजाना कुछ मिनट के लिए श्लोक, मंत्र और सुखदायक बांसुरी की आवाज़ सुनें।
  • एक इनडोर गार्डन होने पर विचार करें, जहां आप बैठ सकते हैं और हर सुबह ताजी ऊर्जा में सोख सकते हैं। शुरुआत करने के लिए आप बांस या फूलों के पौधे या मनी प्लांट का विकल्प चुन सकते हैं।
  • अपने मुख्य प्रवेश द्वार को काले रंग से रंगने से बचें। इसके बजाय, गहरे भूरे रंग के रंगों का चयन करें। मुख्य द्वार दक्षिणावर्त दिशा में खुलना चाहिए। लिविंग रूम में सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें।
  • वास्तु के अनुसार किसी झरने, सुनहरी मछली या बहती नदी की पेंटिंग लटकाएं, इससे सौभाग्य और धन की प्राप्ति होती है।
  • यदि आप विदेशी करियर के अवसरों की तलाश कर रहे हैं, तो विदेशी मुद्रा, उड़ने वाले पक्षियों, रेसिंग बाइक और कारों की पेंटिंग लगाएं।
  • मोर पंख सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है, वास्तु दोषों को दूर करता है और आपके घर में सकारात्मकता लाता है। धन को आकर्षित करने के लिए इसे दक्षिण-पूर्व में रखें। घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति और मोर पंख लगाएं, सुख-समृद्धि के लिए।
  • लाफिंग बुद्धा घर से नकारात्मक आभा को दूर करने में मदद करता है। वास्तु के अनुसार लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को पूर्व दिशा में लगाएं, यदि घर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर हो। यदि प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व की ओर है, तो इसे उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें। पूर्व या दक्षिण-पूर्व कोने में रखे लकड़ी के कछुए घर से नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करते हैं।
  • वास्तु के अनुसार, घड़ियां एक दिशा को सक्रिय करती हैं। इसलिए सुनिश्चित करें कि घर की सभी घड़ियां चालू हालत में हों। सभी गैर-कार्यात्मक घड़ियों को हटा दें, क्योंकि यह आपके वित्त में देरी या ठहराव का प्रतीक है। सभी घड़ियों को उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में रखें
  • वास्तु के अनुसार पक्षियों को भोजन कराने से धन और सकारात्मक ऊर्जा आती है। आप अपने यार्ड, छत या बालकनी में बर्ड फीडर रख सकते हैं और उसमें पानी और अनाज भर सकते हैं। सुनिश्चित करें कि समय समय पर आप इन बर्ड फीडर को साफ रखें।
  • ऊर्जा के सकारात्मक प्रवाह के लिए अपने बिस्तर को हमेशा व्यवस्थित रखें। हर सुबह अपना बिस्तर बनाओ, अपने तकिए और आराम करने वालों को उचित जगह पर रखें। सकारात्मक ऊर्जा के लिए दीवार पर प्रेरणादायक उद्धरणों वाले पोस्टर टांगें। ज्योतिष या वास्तु संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए - Shribalaji - पर क्लिक कर देखे….
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मुख्य द्वार के लिए वास्तु टिप्स

 



वास्तु सिद्धांत, सद्भाव और ऊर्जा प्रवाह के सिद्धांतों के अनुसार रहने की जगह में सुधार करते हैं। घर का मुख्य द्वार ऊर्जा का प्रवेश द्वार होता है। “बाहर की ओर खुलने वाला दरवाजा ऊर्जा को घर से दूर धकेलता है। तो, मुख्य द्वार दक्षिणावर्त खोलना है। अवसर सीमित हो सकते हैं, अगर दरवाजा पूरी तरह से नहीं खुलता है। सुनिश्चित करें कि मुख्य द्वार के पास की लॉबी में अंधेरा न हो। अच्छी रोशनी ऊर्जा के सकारात्मक प्रवाह को उत्तेजित करती है और परिसर के भीतर संतुलन और सद्भाव को बढ़ावा देती है। प्रत्येक घर के फर्श पर, चौखट पर एक दहलीज (छाता) होनी चाहिए। यह घर को बाहरी नकारात्मक प्रभावों से बचाता है। सुनिश्चित करें कि घर का प्रवेश द्वार साफ सुथरा है। प्रवेश द्वार पर जूता रैक न लगाएं, क्योंकि मुख्य द्वार समृद्धि और सकारात्मकता का द्वार है। घर के मुख्य दरवाजे के पास पानी और फूलों की पंखुड़ियों से भरा बर्तन वास्तु के अनुसार अच्छा होता है। पानी नकारात्मक ऊर्जा का कुचालक है और इस प्रकार सकारात्मक माहौल बनाने में मदद करता है। ज्यादा जानकारी के लिये -Shribalaji- पर क्लिक करे ।

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संतान बाधा और उपाय

  (संतानहीन योग ) पंचमेश पापपीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें हो एवं पंचम भाव में राहु हो, तो जातक के संतान नहीं होती। राहु या केतु से जात...