प्रथम भाग का शेष:-
गुरु लाभ भाव में हो तथा चंद्रमा
गुरु के साथ हो। सूर्य लग्न में हो, बुध, शुक्र की युति द्वितीय भाव में हो तो जातक
को देव कृपा से अर्थ लाभ होता है। शुक्र, मिथुन का हो द्वादश भाव में, लग्न में सूर्य,
तृतीयेश बुध हो तो जातक साधारण अर्थोपार्जन कर आजीविका चलाता है। कर्क लग्न में मंगल
यदि मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो "रूचकयोग" बनता है। ऐसा जातक राजातुल्य
ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है। कर्क लग्न में सुखेश
शुक्र, नवम भाव में शुभ ग्रह से युति किए हुए मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास
धन की प्राप्ति होती है। कर्क लग्न में गुरु + चंद्र की युति सिंह, तुला, वृश्चिक या
मीन राशि में हो तो इस प्रकार के 'गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन
की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्रोत से
अकल्पनीय धन मिलता है। कर्क लग्न में धनेश सूर्य अष्टम में तथा अष्टमेश शनि धनस्थान
में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति
ताश, जुआ, मटका, घुड्रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है। कर्क
लग्न में तृतीयेश बुध लाभस्थान में एवं लाभेश शुक्र, तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन
करके बैठे हों तो ऐसे व्यक्ति को भाई, मित्र, भागीदारी, लेखनी, प्रकाशन एवं बुद्धिबल
के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। कर्क लग्न में बलवान सूर्य के साथ यदि चतुर्थेश
शुक्र की युति हो तो व्यक्ति माता के द्वारा, नौकर एवं वाहन के द्वारा धन अर्जित करता
है।
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